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________________ परिच्छेद एक सिद्धान्त व दर्शन का अर्थशास्त्र अर्थशास्त्री एडम स्मिथ ने प्राणी जगत में मानव को 'आर्थिक-प्राणी' (Economic Animal) की संज्ञा दी है। मानव येन-केन-प्रकारेण अर्थ-प्राप्ति के यत्न करता है। इस अर्थ-प्राप्ति में वह कई बार साधन-शुद्धि जैसी अच्छी बातों को नजरअन्दाज कर देता है। ऐसे समय में अर्थशास्त्र को एक नीति और अर्थ-नीति की आवश्यकता होती है। अब तक की अर्थ-नीतियों में मानव के भौतिक कल्याण को ही प्रमुखता दी गई। उसमें नीतियाँ (Policies) तो बहुत रही, पर नैतिकता (Morality) का अभाव रहा। वैसी अर्थनीति से हिंसा-अहिंसा का विवेक गायब हो गया। अर्थ से जीवन संचालित होता है, अहिंसा से जगत् संचालित होता है। __ हिंसा पर खड़ी अर्थ-व्यवस्थाएँ जब अपने पाँव पसारने लगती हैं तो संसार की अन्य व्यवस्थाएँ चरमराने लगती हैं। कोई अपने अधिकारों के लिए (कर्तव्यों के लिए नहीं) हल्ला मचाता है तो कोई छीना-झपटी और तोड़-फोड़ को जायज ठहराता है। प्रकृति के विनाशकारी रौद्र रूप के संकेतों को भी मनुष्य या तो समझता नहीं है या समझना नहीं चाहता है। और कहीं समझ भी लेता है तो उसे शीघ्र भूलकर रोजमर्रा के अपरीक्षित और असमीक्षित जीवन जीने में लग जाता है। जीवन से सम्बन्धित रुपयों-पैसों का पाई-पाई का हिसाब वह लगाता है। परन्तु रुपयों-पैसों से सम्बन्धित जीवन का लेखा-जोखा वह नहीं कर पाता है। वह न अपनी कामनाओं को कम करता है, न परिवार को। वह विराट् सत्ता का मालिक बनकर सब पर अपनी धौंस जमाना चाहता है। ऐसी विषम विकट स्थिति में अहिंसा और संयम जैसे मूल्य मानवता व दुनिया को बचा सकते हैं। अर्थशास्त्र जीवन को सर्वाधिक प्रभावित करता है। यदि इन मूल्यों की अर्थ-नीति में प्रतिष्ठा कर दी जाय तो मानव-जाति अनेक समस्याओं से असानी से मुक्त हो सकती है। भगवान महावीर के आचार-दर्शन का अर्थशास्त्रीय अध्ययन करते हुए ऐसा लगता है जैसे अर्थ-नीति के नियमों को पढ़ रहे हो। उनके सिद्धान्त और दर्शन में भी अर्थशास्त्र के दिशा निर्देशक तत्त्वों की प्रचुरता है। (242)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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