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________________ 12. दिशा : दिशाओं में गमनागमन की मर्यादा करना। 13. स्नान : स्नान व स्नान-जल की मर्यादा करना। 14. भोजन : मिठाई, पकवान आदि विशेष भोजन का त्याग या मर्यादा करना। खाने-पीने की बाजार की वस्तुओं, होटल के भोजन आदि का त्याग या मर्यादा करना। ये नियम व्यक्ति को संकल्पवान और संयमित बनाते हैं। गृहस्थजन ऐसे नियमों के माध्यम से अपने बजट को भी सन्तुलित कर लेते हैं और सम्पन्नता की दिशा में आगे बढ़ते हैं। ___ इस व्रत के पाँच अतिचार निम्न हैं - 1. आनयन प्रयोग : मर्यादित क्षेत्र के बाहर की वस्तु लाना या मंगवाना। 2. प्रेष्य प्रयोग : मर्यादित क्षेत्र के बाहर वस्तु भेजना। 3. शब्दानुपात: मर्यादित क्षेत्र के बाहर की वस्तु को लाने या ले जाने के लिए शब्द-संकेतों का संहारा लेना। दूरभाष (टेलीफोन, मोबाइल आदि) से चतुराई पूर्वक ऐसे संकेत करना आसान हो गया है। जिनके माध्यम से पूरे संसार में कहीं भी सन्देश पहुँचाया जा सकता है। व्रती इन साधनों का अमर्यादित और कुटिल प्रयोग कभी नहीं करेगा। 4. रूपानुपात : हाव-भाव तथा शारीरिक संकेतों से व्रत मर्यादा तोड़ना रूपानुपात 5. पुद्गल-प्रक्षेप : मर्यादा के बाहर के व्यक्ति को उपरोक्तं प्रकार के इशारों के अलावा अन्य इशारों से अपना मन्तव्य बताना। इस व्रत का आर्थिक पक्ष यह है कि जो व्यक्ति स्वदेशी का प्रचार करते . . हैं, वे शुरु में कुछ समय के लिए ही लोगों को स्वदेशी अपनाने का संकल्प करवायें। इससे लोग सहज रूप से ऐसे नियम स्वीकार कर सकेंगे और बड़ी प्रतिज्ञा के लिए तैयार होने की पात्रता अर्जित कर लेंगे। विदेश-यात्रा तथा आयातनिर्यात की नियमावली व्यक्तियों और वस्तुओं की मुक्त आवाही-जावाही को तरह-तरह से नियमित और नियन्त्रित करती है। गाँव में रहने वाले यह ध्यान रखें कि वे वस्तुएँ जो गाँव में उत्पादित या उपलब्ध होती हैं, उन्हें गाँव से ही खरीदेंगे। (203)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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