________________ 22. वाहन विधि : विभिन्न प्रकार के वाहनों की मर्यादा करना। 23. उपानह विधि : विभिन्न प्रकार के जूते, पगरखी, मौजें आदि की मर्यादा करना। 24. सचित्त विधि : विभिन्न प्रकार की सचित्त वस्तुओं की मर्यादा करना। 25. शयन विधि : शय्या, पलंग आदि की मर्यादा करना। 26. द्रव्य विधि : खाने-पीने की चीजों की मर्यादा करना और अन्य प्रकार के द्रव्यों की मर्यादा करना। सामूहिक भोजों में खाने-पीने की वस्तुओं की संख्या सीमित रखना भी इस नियम की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। __उपासकदशांग में इक्कीस वस्तुओं के नाम प्राप्त होते हैं। इन बोलों में सभी प्रकार की खाने-पीने, पहनने-ओढ़ने और उपयोग करने की वस्तुओं का समावेश हो जाता है। श्रावक को चाहिये कि वह यह तय करें कि क्या खाना, नहीं खाना, कौनसी चीज उपयोग करनी या नहीं करनी। मर्यादा का जीवन उसके स्वास्थ्य और बजट पर अनुकूल असर डालेगा। उपभोग-परिभोग परिमाण व्रत के पाँच अतिचार निम्न हैं - . 1. मर्यादा उपरान्त सचित्त वस्तुओं जल, वनस्पति, कन्द, मूल आदि का सेवन करना। 2. मर्यादा उपरान्त सचित्त वस्तुओं से संश्लिष्ट आहार करना। 3. मर्यादा उपरान्त अपक्व भोजन अथवा कच्ची वनस्पति आदि का आहार करना। ... 4. मर्यादा उपरान्त दुष्पक्व/अधपके भोजन का आहार करना। 5. ऐसी वस्तुओं का सेवन करना जिनमें खाने योग्य भाग थोड़ा हो और फेंकने ___ योग्य अधिक हो। ..इन अतिचारों के माध्यम से श्रावक इस विवेक को पुष्ट करें कि उसे कब, क्या, कितना, कहाँ खाना है ? वह अपनी आचार-संहिता, स्वास्थ्य, मर्यादा आदि का ध्यान रखते हुए खान-पान को निर्धारित करें। पन्द्रह कर्मादान . उपभोग-परिभोग परिमाण के अन्तर्गत भोजन सम्बन्धी मर्यादा और - व्यवसाय सम्बन्धी मर्यादाओं की व्यवस्था की गई है। व्यक्ति की जीवन-चर्या (191)