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________________ 4. दूसरों की पड़ी वस्तु को चोरी की नियत से ले लेना। 5. जबरदस्ती किसी की वस्तु अपने अधीन करना। __ इस प्रकार की चोरियाँ लोक-निन्दनीय और राज-दण्डनीय होती है। इसलिए जो व्रत ग्रहण नहीं करता है, उसके लिए भी पूर्ण वर्जनीय है। व्रत ग्रहणकर्ता अपने प्रतिज्ञा-सूत्र में अदत्तादान का त्याग करता है। उसके लिए बिना दी हुई वस्तु को लेने का निषेध है। वह वस्तु सचित्त भी हो सकती है और अचित्त भी। प्रश्नव्याकरण सूत्र में अदत्तादान के चार प्रकार बताये हैं - स्वामी अदत्त, जीव अदत्त, देव अदत्त और अजीव अदत्त / इसका अर्थ है कि श्रावक किसी भी वस्तु को उसके स्वामी, धारक, प्रभारी या सम्बन्धित अधिकृत व्यक्ति की अनुमति के बगैर प्राप्त नहीं करें। व्यवस्था और विश्वास बनाये रखने के लिए यह आवश्यक हैं। किसी की चीज हड़पना, वेतन, किराया, ब्याज, पारिश्रमिक आदि में नियमों से परे जाकर दुर्भावना से फेरबदल करना तथा साहित्य सम्बन्धी चोरियाँ भी श्रावक के लिए वर्ण्य है। . अस्तेय व्रत के पाँच अतिचार इस प्रकार है-6 - 1. स्तेनाहृत : चोरी की वस्तु लेना, खरीदना और अपने घर में रखना स्तेनाहृत है। चोरी करने वाले तो कम होते हैं परन्तु चोरी की चीजें लेने वाले बहुत मिल जाते हैं। क्योंकि वे सस्ते दामों में मिल जाती है। इससे चोरी को प्रोत्साहन मिलता है और बिना चोरी की सही वस्तुओं के व्यापार पर विपरीत प्रभाव होता है। कीमती वस्तुओं की चोरी करने वाले अनेक समूह भी कार्य करते हैं। कितनी ही जगहों पर ऐसे चोरों के गिरोह पकड़े जाते हैं। चोरी की वस्तुएँ खरीदना कानूनी तौर पर भी अपराध है। 2. तस्कर प्रयोग : चोरी तस्करी करने वालों को किसी भी रूप में सहयोग करना श्रावक के लिए निषिद्ध है। जो लोग चोरों, तस्करों आदि को वित्तीय या गैरवित्तीय किसी भी प्रकार की मदद करते हैं, वे समाज-व्यवस्था और अर्थ व्यवस्था में गम्भीर व्यवधान पैदा करते हैं। 3. विरुद्ध राज्यातिक्रम : राजकीय नियमों का उल्लंघन विरुद्ध राज्यातिक्रम अतिचार है। राज्य की निषिद्ध सीमाओं का उल्लंघन भी विरुद्ध राज्यातिक्रम है। सरकार द्वारा अन्तर्राज्यीय व्यापार और अन्तर्देशीय व्यापार के नियमन व ' नियन्त्रण के लिए नियमों के विरुद्ध सीमा-उल्लंघन पर प्रतिबन्ध लगाया जाता (181)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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