________________ किया गया था। कम से कम चार व्यक्तियों द्वारा उठाई जाने वाली शिविकाएँ होती थीं। शिविका सम्पन्न व राजन्य वर्ग द्वारा विशेष रूप से उपयोग में लाई जाती थी। धार्मिक-सांस्कृतिक आयोजनों में भी शिविका का उपयोग होता था। तीर्थंकर महावीर ने चन्द्रप्रभ नामक शिविका में बैठकर अभिनिष्क्रमण किया था। व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए विभिन्न प्रकार की गाड़ियाँ होती थी। वाणिज्यग्राम के गृहपति आनन्द के पास दूरगमन (दिसायत्त) और स्थानीय कार्यों (संवहणीय) के लिए 500-500 शटक गाड़ियाँ थीं। बैल और घोड़ों से रथ संचालित होते थे। युद्धों में भी रथों का उपयोग होता था। यानशालाओं (गैरेज़) का उल्लेख भी मिलता है। जल वाहन नाव, पोत और जलयान (जहाज) मुख्य जल वाहन थे। नाव (नौका) नदी व झील में और पोत व जलयान समुद्र में चलते थे। उत्तराध्ययन सूत्र में दो प्रकार की नावें बताई गई हैं 36 1. आश्राविणी - छिद्रवाली और कमजोर। 2. निराश्राविणी - निश्छिद्र और मजबूत। आचारांग सूत्र” में तीन प्रकार की नौकाएं बताई गई हैं - 1. उर्ध्वगामिनी - प्रवाह के प्रतिकूल जाने वाली। 2. अधोगामिनी - प्रवाह के अनुकूल जाने वाली। 3. तिर्यग्गामिनी - एक किनारे से दूसरे किनारे व तिरछी गमन करने वाली / निशीथसूत्र में चार प्रकार की नौकाओं का उल्लेख हैं - प्रथम दो आचारांग सूत्रानुसार तथा तीसरी और चौथी क्रमशः योजनवेलागामिनी और अर्धयोजनवेलागामिनी। निशीथभाष्य में भी चार प्रकार की नौकाएँ बताई गई हैं। . परन्तु वे निशीथसूत्र से कुछ भिन्न हैं। उनमें प्रथम तीन आचारांग के अनुसार और चौथी का नाम समुद्रगामिनी नौका है। समुद्रगामिनी नाव से तेलायगपट्टण (वेरावल) से द्वारका की यात्रा की जाती थी। नावों के अगट्ठिया, अन्तरंडकडोलिया (डोंगी), कोंचवीरग (जलयान), कुम्भ, तुम्ब, दत्ति, उडुप, पणि आदि नाम भी मिलते हैं।" आवश्यक नियुक्ति के अनुसार प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव ने जलपोतों का निर्माण किया था। सूत्रकृतांग में वर्णित लेप गाथापति के पास अनेक यान थे। बौद्ध जातक साहित्य में पाँच सौ व्यक्तियों की क्षमता के जहाज का उल्लेख मिलता है। (163)