________________ 15. महरा (मथुरा) : जैन ग्रन्थों में इसे भारत का अत्यन्त प्राचीन नगर माना जाता है। प्रसिद्ध उत्तरापथ रास्ते में मथुरा भी आता था, इससे इसका व्यापारिक महत्त्व बढ़ गया था। 16. अहिच्छत्र : चम्पा के धन्य सार्थवाह ने अहिच्छत्र जाने के लिए अपना सार्थ तैयार किया था। अहिच्छत्र से अन्य नगरों से अच्छे व्यापारिक सम्बन्ध थे। उत्तरापथ का रास्ता यहाँ से होकर गुजरता था। उत्तरप्रदेश के बरैली जिलान्तर्गत रामनगर के रूप में वर्तमान में यह जाना जाता है। जैसा कि इसके नाम से ध्वनित होता है, यह पावन नगर भगवान पार्श्वनाथ से जुड़ा हुआ है। कमठ के द्वारा पैदा किये गये उपसर्ग के बचाव में धरणेन्द्र देव ने नागराज का रूप बनाकर पार्श्वनाथ पर सहस्र-फण से छत्र करके उनको उपसर्ग से बचाया था। 17. हस्तिनापुर : यह नगर विभिन्न प्रकार की कला, शिल्प और उद्योग के लिए जाना जाता है। यह भी गंगा के किनारे बसा था। महाभारत में इसका वर्णन मिलता है। वर्तमान में इसे मीरूत/मेरठ (उ.प्र) से 22 मील दूर उत्तर-पश्चिम कोण में तथा दिल्ली से 56 मील दक्षिण-पूर्व में स्थित खण्डहरों के रूप में पहचाना गया है। आदि तीर्थंकर के पौत्र हस्तिन के नाम से इसका नामकरण हस्तिनापुर किया' अथवा यहाँ ही बहुत होते थे इसलिए इसका नाम हस्तिनापुर या गजपुर पड़ा। 18. उज्जैनी : यह वर्तमान में मध्यप्रदेश में उज्जैन के रूप में विद्यमान है। आवश्यक __ चूर्णि में इसे एक बड़ा व्यापारिक केन्द्र बताया गया है। यहाँ का व्यापार दूर दूर तक फैला हुआ था। 19. माहेसरी : उत्तर से दक्षिण के बीच का स्थल होने से यह स्थान दोनों ओर के व्यापार का केन्द्र था। नर्मदा के दक्षिण में इन्दौर (म.प्र.) के पास इसे स्थित माना जाता है। 20. प्रतिष्ठान : यह गोदावरी के उत्तरी किनारे पर महाराष्ट्र के औरंगाबाद के निकट स्थित माना जाता है। प्राचीन समय का प्रतिष्ठित व्यापारिक केन्द्र था। 21. सोपारय : वर्तमान में यह मुम्बई से 42 मील उत्तर में ठाणे जिलान्तर्गत सोपारा (नालासोपारा) के नाम से पहचाना जाता है। प्राचीन समय में यह समुद्री किनारे होने से विदेशी व्यापार की गतिविधियों का मुख्य केन्द्र था। भृगुकच्छ से सुवर्णभूमि (बर्मा) तक इसका नियमित व्यापार था। . (154)