________________ मद्य उद्योग प्रसंगवश ऐसे अनेक सन्दर्भ आगम-ग्रन्थों में मिलते हैं, जिनसे पता चलता है कि विभिन्न प्रकार की शराबों का उत्पादन होता था। शराब-व्यवसाय निन्दित व्यवसाय था। भगवान महावीर ने शराब-व्यवसाय को पन्द्रह निषिद्ध कर्मादानों में परिगणित किया है। ग्रन्थों में अलग-अलग स्थानों पर मदिरा के विभिन्न नामों के उल्लेख मिलते हैं। यथा-चन्द्रप्रभा, मणिशलाका, वरसीधु, वरवारूणी, पालनिर्याससार, पत्रनिर्याससार, पुष्प निर्याससार, मधु, मेरक, जम्बूफल, दुग्ध, अतिप्रसन्ना, तेल्लक, शतायु, खजूरसार, द्राक्षासव, कपिशायन, सुपक्त, इक्षुसार आदि नाम मिलते हैं। ज्ञात होता है कि मद्य का औषधीय प्रयोग भी होता था। हाथी दाँत उद्योग पन्द्रह कर्मादानों में 'दन्त वाणिज्य' का निषेध तत्कालीन समय में हाथी दाँत उद्योग की सूचना करता है। उस समय विस्तृत वन थे और विपुल वन्य जीव। हाथी दाँत प्राप्त करने के लिए हाथी को मारना आवश्यक नहीं था। वह मृत हाथियों से भी सहज प्राप्त होता था। पर लोभी हिंसा-अहिंसा का विचार नहीं करता है। हाथी दाँत की वजह से संसार में हाथियों की संख्या बहुत,ही कम रह गई है। चित्र व्यवसाय ___ज्ञाताधर्मकथांग में वर्णित बहत्तर कलाओं का उल्लेख पूर्व में किया जा चुका है। उनमें चित्रकारी भी है। धारणी देवी के शंयनागार की छत लताओं, पुष्पावलियों और आकर्षक चित्रों से सज्जित थी। मल्लिकुमारी के अनुज मल्लदिन्न ने मिथिला के राजमहल के उद्यान (प्रमदवन) में एक चित्र सभा का निर्माण कराया था। इस चित्र सभा के निर्माण में उस समय के नामी और कुशल चित्रकार आये थे। कुछ चित्रकार तो ऐसे थे जो शरीर का एक अंग देख लेने मात्र से पूरे शरीर की अनुकृति चित्रित करने में दक्ष थे। अन्य उद्योग धन्धे ___ जो विवरण और वर्णन हमें प्राप्त होते हैं, उनसे यह निष्कर्ष निकालना आसान है कि आगम-युग की आर्थिक गतिविधियाँ विविधतापूर्ण और विकसित अवस्था में थी। पर्याप्त और प्रचुर संसाधनों के बीच नये उद्योग-धन्धे, नये शिल्प और वाणिज्य का विकास होता है और ऐसी विकासमान या विकसित व्यवस्था में ही धर्म और अध्यात्म की गतिविधियाँ आगे बढ़ पाती है। ग्रन्थों में ऊपर वर्णित (136)