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________________ प्रकाशकीय मूल्यात्मक अर्थव्यवस्था की आवश्यकता वर्तमान विश्व अनेक संकटों और समस्याओं से जूझ रहा है। समस्याओं का एक शब्द में कारण ढूँढा जाय तो वह शब्द है - हिंसा और उसका समाधान है - अहिंसा। हिंसा का प्रमुख कारण परिग्रह है। शान्ति के लिए अहिंसा और अपरिग्रह की दुनिया को आवश्यकता है। दुनिया की सारी गतिविधयाँ अर्थ से संचालित होती है। यदि अर्थ की व्यवस्था में अहिंसा और अपरिग्रह जैसे उदात्त और कालजयी मूल्यों का समावेश कर लिया जाय तो वसुंधरा को स्वर्ग बनाया जा सकता है। जीवन में अर्थ का प्रभाव और अभाव दोनों ठीक नहीं है। मूल्यपरक अर्थव्यवस्था अर्थ के अभाव और प्रभाव दोनों को समाप्त करने में सक्षम है। भगवान महावीर के सिद्धान्त और उनका आचार दर्शन समतामूलक अर्थसमाजव्यवस्था की स्थापना करता है। डॉ. दिलीप धींग ने प्रस्तुत शोध ग्रन्थ में एक ऐसी ही मूल्याधारित अर्थव्यवस्था की वकालात की है, जिसके सूत्र आगम साहित्य में मोतियों की मानिन्द बिखरे पड़े हैं। ... डॉ. धींग की यह हार्दिक इच्छा रही कि प्राकृत भारती अकादमी से इस महत्वपूर्ण शोध ग्रन्थ का प्रकाशन हो। आचार्य श्री देवेन्द्र मुनि जी के शिष्य श्रमणसंघीय सलाहकार दिनेश मुनि जी ने भी अकादमी को इस बाबत लिखा। पाठकों के हाथों में यह ग्रन्थ समर्पित करते हुए हमें प्रसन्नता है। ग्रन्थ की विषयवस्तु समय और समाज की मांग को पूरा करती है। हमारी भावना है कि ग्रन्थ का अंग्रेजी संस्करण भी प्रकाशित हो, जिससे अधिकाधिक लोगों तक भगवान महावीर की मूल्यपरक अर्थव्यवस्था के सूत्र पहुँचाये जा सकें। विश्वास किया जाना चाहिये कि यह ग्रन्थ व्यक्ति और समाज तथा देश और दुनिया के लिए उपयोगी और मार्गदर्शक सिद्ध होगा। देवेन्द्रराज मेहता संस्थापक एवं मुख्य संरक्षक प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर (xv)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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