________________ मृगदन्ती, चम्पक, कुन्द, वस्तुल, शैवाल आदि फूलों के नाम मिलते हैं। कोंकणदेश में फूलों और फलों का अच्छा व्यापार था। ___ उन्नीसवें तीर्थंकर मल्लीनाथ की माँ प्रभावती को पुष्प-दोहद उत्पन्न हुआ, वे माताएँ धन्य है जो जल-थल में उत्पन्न, खिले हुए तरह-तरह के पंचरंगे फूलों की कई तहों से भरी-पूरी शय्या पर आनन्द से बैठती और सोती हैं। वह गुलाब, मालती, चम्पा, अशोक, पुन्नाग, नाग, मरुवा, दमनक, कोरण्टे तथा कुब्जक के फूलों-पत्तों से बने कोमल, सुन्दर और सुरभित गजरों को सूंघती हैं और फूलों से घिरी अपना दोहद पूरा करती है। ज्ञाताधर्मकथांग के अनुसारं साकेत नरेश की पटरानी पद्मावती ने नागपूजा-उत्सव के अवसर पर पाँच वर्षों के जल-पुष्पों और थल-पुष्पों के गजरों से नाग-मन्दिर सजाने का आदेश दिया। स्पष्ट है कि जल में उत्पन्न फूलों का भी प्रयोग होता था। फूलों से अनेक प्रकार के सुगंधित द्रव्य तैयार किये जाते थे। मधुमक्खियाँ फूलों से रस प्राप्त करती थी। मक्षिक (मधुमक्खियों से प्राप्त मधु), भ्रामर (भौंरों से प्राप्त मधु) और कुत्तिय (कौत्रिक) शहद के उल्लेख मिलते हैं। इनके अलावा पुष्पोदक, गन्धोदक, उष्णोदक, शुभोदक, शुद्धोदक कुमकुम (केसर), कपूर, लौंग, लाख, चन्दन, कालागुरू (अगर), कुन्दरूक्क, तुरूक्क आदि उपयोगी द्रव्यों का वर्णन मिलता है। स्पष्ट है इन सब चीजों का आर्थिक महत्व भी था। लोग पुष्पों और पुष्प-उत्पादों का व्यापार करके लाभ कमाते थे। फल और वृक्ष उद्यानों में फलदार वृक्ष भी होते थे। फल मुख्यतः भोजन और व्यापारिकमहत्व का उत्पाद है। निम्न फलों का उल्लेख जैन-सूत्रों में मिलता है- आम, जामुन, कदली (केला), दाड़म (अनार), द्राक्ष, खजूर, नारियल, ताड़, कपित्थ (कैथ), इमली, अमरूद, कटहल, बिजौरा, सन्तरा आदि।" इनके अलावा भी अनेक प्रकार के फलों के उल्लेख प्राप्त होते हैं। आम उस समय का मुख्य फल था। पोलासपुर और हस्तिानापुर में सहस्राम्रवन उद्यान थे। जिसमें आम के हजारों पेड़ थे। फलों को पकाने के लिए मुख्यतः चार विधियाँ अपनाई जाती थीं :1. ईंधन पर्यायामः घास फँस और भूसे में रखकर फल पकाना। इस विधि से मुख्यतः आम पकाये जाते थे। 2. धूमपर्यायामः तिन्दुक आदि फलों को इस विधि से पकाया जाता था। इसमें फलों को धुआँ देकर पकाया जाता था। इसमें एक गड्ढा खोदकर उसमें (110)