________________ दुर्लभ वस्तुओं के लिए अधिक मूल्य चुकाना पड़ता है। अलग अलग देशों/राज्यों की मुद्राओं की क्रय-शक्ति अलग अलग होती थी। ऐसा सम्बन्धित देशों/राज्यों की आर्थिक स्थिति के कारण होता था। बृहत्कल्पभाष्य में बताया गया है कि दक्षिणापथ के दो रुवगों का मूल्य उत्तरापथ के एक रुवग के बराबर तथा उत्तरापथ के दो रुवगों का मूल्य पाटलिपुत्र के एक रुवग के बराबर था। इसी प्रकार दक्षिणापथ के दो रुवगों का मूल्य कांचीपुर के एक नेलक के मूल्य के बराबर तथा कांचीपुर के दो नेलकों का मूल्य पाटलिपुत्र के एक रुवग के मूल्य के बराबर था आगम युग में रोजमर्रा की चीजें सर्वसुलभ थीं। प्रजा की क्रय-शक्ति कुछ लोगों या वों तक केन्द्रित नहीं थी। इसलिए जनसामान्य का जीवन सुखी था। दुष्काल की विभीषिका के अतिरिक्त भुखमरी की कोई सूचना आगम ग्रन्थों में नहीं मिलती है। माप-तौल यह स्पष्ट है कि अगम युग का मानव व्यापार वाणिज्य में कुशल था। वाणिज्यिक विकास और आर्थिक समृद्धि के लिए वह व्यापार को व्यापार के तरीकों और नियमों से करता था। वस्तुओं को मापने व तौलने के लिए विभिन्न मापकों का उल्लेख आगमों में मिलता है। ज्ञाताधर्मकथांग में चार प्रकार की मापप्रणालियाँ बताई गई हैं - गणिम, धरिम, मेज और परिच्छ / 1.गणिम : गिन कर बेची जाने वाली वस्तुएँ गणिम कहलाती थी अथवा गणिम के द्वारा वस्तुओं को गिन कर बेचा जाता था। इसके अन्तर्गत एक से लगाकर एक करोड़ तक की गिनती की जाती थी। 2. धरिम : इसके अन्तर्गत वस्तुओं को तौल कर बेचा जाता था। कर्ष, अर्धकर्ष, पल, अर्धपल, भार, अर्धभार, तुला आदि तौलने के माध्यम थे। 3. मेज/मेय/मान : इसके अन्तर्गत वस्तुएँ माप कर बेची जाती थी। वस्तुओं के स्वभाव के अनुसार अलग-अलग वस्तुओं के मापक अलग-अलग हुआ करते थे। ये तीन थे - धान्यमान, रसमान और अवमान। धान्यमान के अन्तर्गत असृति (असई), प्रसृति (पसई), सेतिका, कुम्भ, कुडव, प्रस्थ, आढ़क, द्रोण, वाह आदि धान्यमानों के द्वारा मुक्तोलि, मुख, इदुर, आलिन्दक, अपचार आदि प्रकार के कोठारों में भरे अनाज का माप किया जाता था। ये मापक मगध में प्रचलित थे। तरल पदार्थों को मापने के लिए रसमान होते थे, जिनमें चतुष्पष्ठिका, द्वात्रिंशिका, षोडषिका, अष्टभागिका आदि उपकरण थे। अवमान के अन्तर्गत हाथ, दण्ड, (71)