________________ 80 प्राकृत पाठ-चयनिका जारिसयं विमलको विमलं को तारिसं लहइ अत्थं। अमय-मइयं व सरसं सरसं चिय पाइयं जस्स। ति-पुरिस-चरिय-पसिद्धो सुपुरिस-चरिएण पायडो लोए। सो जयइ देवगुत्तो वंसे गत्ताण राय-रिसी।। बुहयण-सहस्स-दइयं हरिवंसुप्पत्ति-कारयं पढमं। वंदामि वंदियं पि हु हरिवरिसं चेय विमल-पयं।। संणिहिय-जिणवरिंदा धम्मकहा-बंध-दिक्खिय-णरिंदा। कहिया जेण सुकहिया सुलोयणा समवसरणं व।। सत्तूण जो जस-हरो जसहर-चरिएण जणवए पयडो। कलि-मल-पभंजणो च्चिय पभंजणो आसि राय-रिसी।। जेहि कए रमणिज्जे वरंग-पउमाण चरिय-वित्थारे। कह व ण सलाहणिज्जे ते कइणो जडिय-रविसेणे।। जो इच्छइ भव-विरहं भवविरहं को ण वंदए सुयणो। समय-सय-सत्थ-गुरुणो समरमियंका कहा जस्स। अण्णे वि महा-कइणो गरुय-कहा-बंध-चिंतिय-मईओ। अभिमाण-परक्कम-साहसंक-विणए विइंतेमि।। एयाण कहा-बंधे तं णत्थि जयम्मि जं कह वि चुक्कं। तह वि अणंतो अत्थो कीरइ एसो कहा-बंधो। 7. ताओ पुण पंच कहाओ। तं जहा। सयलकहा, खंडकहा, उल्लावकहा, परिहासकहा, तहा वरा कहिय त्ति। एयाओ सव्वाओ वि एत्थ पसिद्धाओं सुंदर-कहाओ। / एयाण लक्खण-धरा संकिण्ण-कह त्ति णायव्वा।। कत्थई रूवय-रइया कत्थइ वयणेहि ललिय-दीहेहिं। कत्थइ उल्लावहिं कत्थइ कुलएहि णिम्मविया।।