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________________ 60 प्राकृत पाठ-चयनिका अध्ययन के इच्छुक अन्य सुयोग्य प्रतिभागियों को यह संस्थान अपनी ओर से सभी सुविधाएँ प्रदान करता है। इन्हीं प्राकृत अध्ययन शालाओं में विद्वानों के लम्बे अनुभव और अनेक बदलाओं के बाद प्राकृत भाषा और साहित्य के अध्ययन हेतु यह उच्चतर (Advanced) पाठ्यक्रम तैयार किया गया है। इस पाठ्यक्रम की अपनी यह विशेषता है कि इसे व्याकरण के मुख्य आधार पर पढ़ाया जाता है, जिससे उस पाठ के भाव ग्रहण के साथ ही उसमें सन्निहित विभिन्न प्राकृतों का स्वरूप और उनके व्याकरण पक्ष का भी विशेष प्रशिक्षण हो जाए ताकि प्राकृत साहित्य के किसी भी ग्रन्थ को समझने का मार्ग प्रशस्त हो। ___ जब यहाँ से प्रशिक्षित और कालेजों, विश्वविद्यालयों में पढ़ाने वाले विद्वान् संस्कृत नाटकों में विद्यमान अधिकांश प्राकृत सम्वादों का उनकी संस्कृतच्छाया के आधार पर नहीं, अपितु मूल प्राकृत भाषा के ही आधार पर अर्थ समझाते हैं और गर्व से कहते हैं कि हमने प्राकृत भाषा और साहित्य का यह प्रशिक्षण बी. एल. इन्स्टीट्यूट ऑफ इण्डोलॉजी से प्राप्त किया है, तब हमें गौरवपूर्ण प्रसन्नता और सार्थकता का विशेष अनुभव होता है। पिछले चौबीस वर्षों में प्रशिक्षित ऐसे ही शताधिक विद्वानों में अनेक विद्वानों से जब हम यह भी सुनते हैं कि प्राकृत भाषा और साहित्य में इक्कीस दिनों में हम जो प्रवीणता यहाँ प्राप्त कर लेते हैं, वह 2-3 वर्षों में भी अन्यत्र सम्भव नहीं है, तब हमें इस दिशा में विशेष कार्य करने का अनुपम उत्साह प्राप्त होता है। प्रस्तुत पाठ्यक्रम की पुस्तक के रूप में प्रकाशन की काफी समय से प्रतीक्षा रही जो अब राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान (मानित विश्वविद्यालय नई दिल्ली, मानव संसाधन मंत्रालय, .. भारत सरकार के अधीन) के सर्वविध सहयोग से पूर्ण हो रही है। इस हेतु यशस्वी एवं माननीय कुलपति प्रो. राधावल्लभ त्रिपाठी के हम सभी बहुत कृतज्ञ हैं। __ इसे तैयार करने में प्राकृत-संस्कृत एवं अपभ्रंश भाषा और साहित्य के अनेक अनुभवी एवं उच्च कोटि के विद्वानों का विशेष सहयोग प्राप्त रहा है। प्राच्य भारतीय विद्याओं के सुविख्यात मनीषी प्रो. गयाचरण त्रिपाठी (राष्ट्रीय अध्येता, भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला) के विशिष्ट मार्गदर्शन एवं सहयोग के प्रति हम सभी के मन में कृतज्ञता के भाव विद्यमान हैं। हमारे संस्थान के सम्माननीय उपाध्यक्ष एवं सुप्रसिद्ध विद्वान् डॉ. जितेन्द्र बी. शाह एवं अन्य सभी ट्रस्टियों के विशेष आभारी हैं। हमें उन सुझावों की भी प्रतीक्षा रहेगी, जिनसे यह पाठ्यक्रम और भी बहुउद्देशीय बन सके। श्रुत पंचमी, 2012 - प्रो. फूलचन्द जैन प्रेमी निदेशक, बी. एल. इन्स्टीट्यूट ऑफ इण्डोलॉजी, दिल्ली - 36
SR No.004280
Book TitlePrakrit Path Chayanika Ucchatar Pathyakram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Institute of Indology
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year2012
Total Pages124
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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