________________ गउडवहो - काव्यारम्भः वाक्पतिराज विरचित 1. अत्थि णिअत्तिअ-णीसेस-भुवण-दुरिआहिणंदिअ-महिंदो / सिरि-जसवम्मो त्ति दिसा-पडिलग्ग-गुणो महीणाहो // 1 // 2. घोलइ समुच्छलती जम्मि चलंतम्मि रेणु-भावेण / वसुहा अमुक्क-सेस-प्फण व्व धवलाअवत्तेसु // 2 // 3. वेहव्व-दुक्ख-विहलाण जस्स रिउ-कामिणीण पम्मुक्का / कर-ताडण-भीएंहिँ व हारेहिँ पओहरुच्छंगा // 3 // 4. कबरी-बंधा अज्ज वि डिला ते जस्स वेरि-बंदीण / हढ-कङ्कण-खत्तंगुलि-णिवेस-मग्ग व्व दीसंति // 4 // 5. चलिअम्मि जम्मि विअणा-विहुअ-फणा-मंडलो वि णो मुअइ / महि-वेढं बल-भर-खुत्त-रअण-संदाणि सेसो // 5 // 6. णीसंदइ जस्स रणाइरेसु कीलालिओ गअ-मएण / आहअ-वम्माणल-दर-विराअ-धारो व्व कर-वालो // 6 // 7. सेवंजलि-मिलिअ-णडाल-मंडला होंति हढ-पणामेसु / णूमिअ-भिउडी-भंग व्व जस्स पडिवक्ख-सामंता // 7 //