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________________ दृष्टि सही नहीं है। जब अनादिकाल से ऐसा हो रहा है तो वह मिथ्यात्व के चक्र को कैसे तोड़ पायेगा? किन्तु आत्मा में एक ऐसी शक्ति है, जो पूर्णरूपेण कर्म से कभी प्रभावित नहीं होती। यदि कर्म का पूरा साम्राज्य भी हो जाये तो भी वह उसे कभी मिटा नहीं सकता। उसे तोड़ नहीं पाता। कर्म का साम्राज्य, मोह का साम्राज्य इसीलिए स्थापित होता हैं और तब तक चलता है, जब तक कि आत्मा अपनी शक्ति के प्रति जागृत न हो जाये, जानने का क्षण प्राप्त न हो जायें। किसी भी राष्ट्र में विदशी शासन तब तक चलता है, जब तक उस देश या राष्ट्र की जनता जागृत नहीं हो जाती। दुनिया के किसी नी राष्ट्र के इतिहास में यही हुआ है। विदेशी शासकों ने तब तक शासन केया, जब तक कि वहां की जनता जाग न गयी या वहां की जनता को जगाने वाला कोई व्यक्ति उपलब्ध नहीं हो गया। जिस क्षण जनता . नाग जाती है या जगाने वाला व्यक्ति, प्राण फूंकने वाला व्यक्ति प्राप्त हो जाता है तब विदेशी शासन चल नहीं सकता, उसकी जड़ें हिल जाती हैं, उसे अपनी सत्ता समेट लेनी पड़ती है। ___ काल की भी एक शक्ति है जो कर्म से प्रभावित नहीं होती। एक काल आता है, एक समय आता है, एक क्षण ऐसा आता है कि उस क्षण में काललब्धि के कारण आत्मा सहज रूप में जग जाती है। उसमें अपने अस्तित्व के प्रति जागरूकता का भाव आ जाता है। उस क्षण में मिथ्यात्व का साम्राज्य, मोह का साम्राज्य पहली बार हिल उठता है और धीरे-धीरे उसकी जड़ें टूटने लगती हैं। यदि सब कुछ ही कर्म के द्वारा निष्पन्न होता, कर्म की पूर्ण सत्ता होती, कर्म का सार्वभौम साम्राज्य होता तो कभी इस चक्र को नहीं तोड़ा जा सकता। हम इस बात को याद रखें कि यदि सब कुछ परिस्थिति के द्वारा नहीं होता है तो सब कुछ कर्म के द्वारा भी नहीं होता है। इस दुनिया में किसी को अखंड साम्राज्य या एकछत्र शासन प्राप्त नहीं है। सबके लिए अवकाश है। काललब्धि को भी अवकाश है। इसी काललब्धि के द्वारा कुछ विशिष्ट घटनाएं घटित ोती हैं। हम एक घटना को समझें। यह घटना है। -वनस्पति जीवों के 72 कर्मवाट
SR No.004275
Book TitleKarmwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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