________________ साधना की सफलता के लिए हमें इन कर्मशास्त्रीय रहस्यों को समझना अत्यन्त आवश्यक हो जाता है। हम मिथ्या दृष्टिकोण को छोड़ें, सम्यक् दृष्टिकोण को अपनाएं, अविरति को छोड़ें और विरति को ग्रहण करें, प्रमाद को छोड़कर अप्रमाद में आएं और कषाय की आग को शांत कर चलते जाएं। इतना होने पर चंचलता अपने आप कम होती रहेगी। ___लोग पूछते हैं-पहले ही क्षण में मन चंचल है। उसे शांत कैसे करें, ऐसा कोई जादू नहीं है कि पहले ही क्षण में मन शांत हो जाए। मन को शांत करने की एक प्रक्रिया है। उस प्रक्रिया में से गुजरें, मन शांत हो जायेगा। वह प्रक्रिया है-मिथ्या दृष्टिकोण, अविरति, प्रमाद और कषाय को उपशांत करते जाएं, मन शांत हो जायेगा। इन चारों को क्षीण करते जाएं, क्षीण करने की साधना करें, एक दिन ऐसा आयेगा कि मन शांत हो रहा है, हो गया है, वाणी शांत हो रही है, हो गयी है, शरीर शांत हो रहा है, हो गया है। हम इस प्रक्रिया को दृढ़ता से पकड़ें और उसको करते चले जाएं। उसमें से गुजरें, क्रमशः हम अपने लक्ष्य में सफल होते जाएंगे। हम तात्कालिक लाभ पाने के लिए यह न सोचें कि अभी सब कुछ हो जाये, साधना के पहले क्षण में ही सिद्धि मिल जाये। यह न कभी हुआ है, न होता है और न होगा। हम प्रक्रिया करते चले जाएं। निराश न बनें। ___हम श्वास-प्रेक्षा या शरीर-प्रेक्षा कर रहे हैं, उसका पूरा अर्थ सबकी समझ में आये या न आये, किन्तु यह निश्चित है कि हम एक प्रक्रिया में से गुजर रहे हैं और उसके द्वारा उन चारों के चक्रव्यूह को तोड़ने का प्रयास कर रहे हैं। प्रश्न होता है कि हम अनुप्रेक्षा के अभ्यासकाल में चिन्तन करते हैं, चिन्तन करना, प्रेक्षा में मन को इधर से उधर घुमाना, चंचलता को मिटाने का उपाय कैसे हो सकता है? प्रश्न सही है। हम अनुप्रेक्षा के समय चंचलता को नहीं मिटा रहे हैं, उसके लिए प्रयल भी नहीं कर रहे हैं। हम एक प्रकार की चंचलता के सामने दूसरे प्रकार की चंचलता खड़ी कर रहे हैं। महर्षि पतंजलि ने कहा है-'वितर्कबाधने प्रतिपक्षभावनम् / एक पक्ष को तोड़ना है तो दूसरे प्रतिपक्ष को पैदा करो। अशुभ को तोड़ना है 64 कर्मवाद