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________________ प्रस्तुति अनेकान्त मुझे इसलिए प्रिय है कि वह सत्य की खोज का आलम्बन है, अवरोध नहीं है। आग्रह अवरोध बनता है। कर्म हमारे अतीत का लेखा-जोखा है। इस विषय में एकांतिक दृष्टि और आग्रह पनपे हैं। इसलिए यह महान् सिद्धांत उपयोगी कम हुआ है, आवरण अधिक बना। ___ अध्यात्म की व्याख्या कर्म सिद्धांत के बिना नहीं की जा सकती। इसलिए यह एक महान् सिद्धांत है। इसकी अतल गहराइयों में डुबकी लगाना उस व्यक्ति के लिए अनिवार्य है, जो अध्यात्म के अंतस् की ऊष्मा का स्पर्श चाहता है। कर्म के विषय में मैंने अनेक बार अनेक दृष्टिकोणों से चर्चा की। उसे एक साथ संकलित कर मुनि दुलहराजजी ने स्वाध्यायी के लिए सुलभ बना दिया। यह एक श्रमसाध्य कार्य है, पर इसकी उपयोगिता असंदिग्ध है। . पूज्य गुरुदेव श्री तुलसी के शासनकालीन पचास वर्ष अमृत-पट्ट महोत्सव के अवसर पर इसकी उपलब्धि अपने आप में एक विशिष्टता होगी। आचार्य महाप्रज्ञ
SR No.004275
Book TitleKarmwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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