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________________ हो तो फिर साधना की बात व्यर्थ है। उसके लिए साधना करने की आवश्यकता नहीं है। दमन हर किसी व्यक्ति को करना ही पड़ता है। कोई भी व्यक्ति अपनी सारी आकांक्षाओं, सारी इच्छाओं को पूरा नहीं कर सकता। वह नियंत्रित है सामाजिक बंधनों से। दंड का क्षेत्र, व्यवस्था का क्षेत्र और राजनीति का क्षेत्र-यह सब दमन का क्षेत्र है। सर्वत्र बन्धन-ही-बन्धन है। समाज का बंधन, परिवार का बंधन, राज्य का बन्धन। सर्वत्र घेरे-ही-घेरे हैं। दमन करने के अतिरिक्त कोई रास्ता ही नहीं है। साधना का प्रयोजन है-मार्गान्तरीकरण, उदात्तीकरण / साधना का मार्ग दमन का मार्ग नहीं है। वह है उदात्तीकरण का मार्ग। या तो हम उदात्तीकरण करें या मार्ग बदल दें। आंख का काम है-देखना। आंख रूप को देखती है। रूप के प्रति या तो राग उत्पन्न होगा या द्वेष। दो ही बातें होंगी-या तो प्रीत्यात्मक अनुभूति होगी या अप्रीत्यात्मक अनुभूति होगी। तो फिर हम क्या करें-यह प्रश्न होता है। समाधान की भाषा में कहा जा सकता है कि हम मार्गान्तरीकरण करें, दिशा बदल दें। बाहर को न देखें, भीतर की ओर देखने का प्रयत्न करें। प्रेक्षा करें, प्रकंपनों की प्रेक्षा करें। प्रेक्षा मार्गान्तरीकरण का उपाय है। मार्ग इस प्रकार बदलें कि जो आकर्षण बाहर की ओर होता था वह आकर्षण भीतर की ओर हो जाये। उत्सुकता बदल जाये। उत्सुकता रहती है बाहर को देखने की। घटना घटित होती है, व्यक्ति उत्सुक हो जाता है। साधना की सबसे बड़ी बात है-आकर्षण की धारा को बदल देना। जब बाहर में अनुत्सुकता होती है तब भीतर का आकर्षण बढ़ता है, उत्सुकता बढ़ती है। पतंजलि ने इसे 'प्रत्याहार' कहा है। प्रत्याहार मार्गान्तरीकरण का उपाय है। इन्द्रियों की दिशाओं को बदलो। मन की दिशाओं को बदलो। वे बहिर्गामी न रहें, अन्तर्मुखी बन जाएं। . साधना का मुख्य सूत्र है-मार्गान्तरीकरण। गौतम ने पूछा-भगवन्! धर्म-श्रद्धा से क्या प्राप्त होता है? भगवन् ने कहा-गौतम! धर्म-श्रद्धा से अनुत्सुक्ता पैदा होती है। जब धर्म के प्रति श्रद्धा घनीभूत होती है, आकर्षण होता है, उत्सुकता होती है तब अनुत्सुकता पैदा होती है। जो उत्सुकता बाहर की ओर 50 कर्मवाद
SR No.004275
Book TitleKarmwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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