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________________ डाले बिना नहीं रह सकते, निमित्त बने बिना नहीं रह सकते। यदि वे निमित्त बनेंगे तो राग-द्वेष का चक्र चलना बन्द नहीं होगा। ___भावकर्म द्रव्यकर्मों को प्रभावित करते हैं और द्रव्यकर्म (पौद्गलिक कम) भावकर्म को प्रभावित करते हैं। दोनों की एक ऐसी संधि है कि दोनों एक-दूसरे का परस्पर सहयोग करते हैं। दोनों एक-दूसरे को जीवनी-शक्ति दे रहे हैं। दोनों में एक समझौता है। भावकर्म द्रव्यकर्मों को जिला रहे हैं और द्रव्यकर्म भावकों को जिला रहे हैं। साधना में यही करना है कि 'येन-केन प्रकारेण' हम इन दोनों की संधि को छिन्न-भिन्न कर सकें, तोड़ सकें। या हम दोनों में एक ऐसा विभेद पैदा कर दें जिससे कि भावकर्म एक ओर हो जाए और द्रव्यकर्म एक ओर हो जाए। दोनों में ऐसी भेदवृत्ति जाग जाए, जिससे कि अनादिकाल से चली आ रही उनकी संधि में दरार पड़ जाए, हम इस बांध में ऐसा कोई छेद कर दें, जिससे बांध का पानी बह जाए और बांध पूरा खाली हो जाये। ____ यदि साधना के हार्द को हम समझ सकें तो इस प्रक्रिया को करना ही होगा। यह वास्तविकता है कि कर्म के मर्म को समझे बिना कोई साधना के मर्म को समझ नहीं सकता। आज मैं कर्म की चर्चा कर रहा हूं तो वह कुछ साधकों को आश्चर्यकारी लग सकता है और उनके मन में यह प्रश्न भी हो सकता है कि साधना के क्षेत्र में कर्म की 'चर्चा का क्या प्रयोजन है? मैं समझता हूं कि कर्म के रहस्यों को पकड़े बिना साधना के रहस्य को समझा ही नहीं जा सकता। साधना केवल आकाशीय उड़ान नहीं है। यह गहराई में जाने की प्रवृत्ति है, जहां जाकर हम अपने वास्तविक अस्तित्व को पहचान सकते हैं, पकड़ सकते हैं। इसलिए यह बहुत आवश्यक है कि हम मूलस्रोत को पकड़ें। कर्म मूलस्रोत है किन्तु कर्मों का भी मूलस्रोत है-भावकर्म। भावकर्म को समझे बिना साधना की कोई बात समझ में नहीं आ सकती।। _ भावकर्म के द्वारा द्रव्य कर्मों का आकर्षण होता है। भावकर्म है-जैविक रासायनिक प्रक्रिया, जीव में होने वाली रासायनिक प्रक्रिया। भावार्म जैविक रासायनिक प्रक्रिया है और द्रव्यकर्म सूक्ष्म शरीर की रासायनिक प्रक्रिया है। एक जैविक है और एक पौद्गलिक। दोनों में कर्म की रासायनिक प्रक्रिया : 1 35
SR No.004275
Book TitleKarmwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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