________________ दीखने लग जाते हैं। ये सारे स्मृति के रूप हैं। ये सारे वासना और संस्कार के कार्य हैं। इनके साथ हम अच्छाई या बुराई को नहीं जोड़ सकते। यह वासना का कार्य नहीं है। संस्कार का भी यह कार्य नहीं है। प्रश्न होता है कि यह कार्य किसका है? __ स्मृति के उभरने के बाद, अच्छाई और बुराई को जोड़ने वाली एक तीसरी सत्ता है। वह है कर्म। कर्म न वासना है, न संस्कार है, न धारणा है और न स्मृति। वह इन सबसे भिन्न है, पृथक् है। वह भिन्न इसलिए है कि ज्ञान के क्रम में कर्म नहीं बनता। केवल ज्ञान का जो क्रम है, कोश जानने का जो क्रम है, वहां कर्म की रचना नहीं होती, कर्म का सम्बन्ध हमारी आत्मा के साथ स्थापित नहीं होता। यह सम्बन्ध कब और कैसे स्थापित होता है, इस प्रश्न पर हमें विचार करना है। ___ महावीर से पूछा गया-'भंते! कर्म का सम्बन्ध कितने स्थानों से होता है?' . महावीर ने कहा-'दो स्थानों से कर्म का सम्बन्ध होता है। एक स्थान है राग का और दूसरा स्थान है द्वेष का। इन दो स्थानों से आत्मा के साथ कर्म का सम्बन्ध होता है। यह राग और द्वेष से स्थापित होने वाला सम्बन्ध है। कोरे ज्ञान से कोई सम्बन्ध नहीं होता, वासना से कोई सम्बन्ध नहीं होता, संस्कार से कोई सम्बन्ध नहीं होता, स्मृति से कोई सम्बन्ध नहीं होता। जब इनकी पृष्ठभूमि में राग नहीं होता, द्वेषं नहीं होता तो कर्म का सम्बन्ध स्थापित नहीं होता। हम कितना ही जानें, कर्म का सम्बन्ध नहीं होगा। जैसे-जैसे चेतना का विकास होता चला जायेगा, जानने की हमारी क्षमता बढ़ती चली जाएगी, तब भी कर्म का कोई सम्बन्ध स्थापित नहीं होगा। कर्म का सम्बन्ध होगा राग से। कर्म का संबंध होगा द्वेष से। ____दो प्रकार की अनुभूतियां हैं। एक है प्रीत्यात्मक अनुभूति और दूसरी है अप्रीत्यात्मक अनुभूति। प्रीत्यात्मक अनुभूति या संवेदना को राग कहते हैं और अप्रीत्यात्मक अनुभूति या संवेदना को द्वेष कहते हैं। प्रीति और अप्रीति-इनके अतिरिक्त तीसरी कोई संवेदना नहीं होती। सारी अनुभूतियां, कर्म : चौथा आयाम 16