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________________ का प्रयोग हो चुका है। वहां आर्थिक व्यवस्था को सर्वथा बदल दिया गया है। तो क्या हम मान लें कि उन देशों में कर्मवाद समाप्त हो गया है। ___. रूस में कर्मवाद समाप्त, चीन में कर्मवाद समाप्त। और जितने भी साम्यवादी या समाजवादी राष्ट्र हैं, उन सब में भी कर्मवाद समाप्त। . कुछ वर्षों पूर्व 'धर्मयुग' के सम्पादक धर्मवीर भारती की चीन-यात्रा के संस्मरण पढ़े। चीन जैसे विशाल देश में किसी भी व्यक्ति के पास आपनी व्यक्तिगत कार नहीं है। वहां कोई बड़ा उद्योगपति या भू-स्वामी नहीं मिलेगा। व्यक्तिगत स्वामित्व इतना सीमित कर दिया गया कि संपत्ति के आधार पर कोई बड़ा या छोटा आदमी नहीं होगा। कोई भिखारी नहीं मिलेगा। एक कृपा कर रोटी देनेवाला और दूसरा दीनतापूर्वक रोटी लेनेवाला नहीं मिलेगा। जिसे रोटी न मिलती हो, ऐसा गरीब नहीं मिलेगा। जिसमें लाखों और करोड़ों की संपदा कमा ली हो, ऐसा भाग्यशाली भी नहीं मिलेगा। तो क्या कर्मवाद समाप्त हो गया? ,यही वह बिन्दु है जिस पर विमर्श जरूरी है। कर्म के विषय में बहुत भ्रान्तियां पैदा हो गई हैं। उन्हें तोड़ना आवश्यक है। कभी-कभी भ्रान्तियों का वात्याचक्र इतना बड़ा बन जाता है कि आदमी मूल तक पहुंच ही नहीं पाता, परिधि में ही उलझ जाता है। कर्म व्यक्ति की आन्तरिक अवस्था में होने वाले परिवर्तन का घटक है। प्राणीमात्र में निरन्तर आन्तरिक परिवर्तन होता है, वह सारा-का-सारा कर्मकृत होता है। एक व्यक्ति क्रोधी है। कोई क्रोध क्यों करता है? इसलिए करता है कि उसके भीतर कर्म है। अभिमान, माया, लोभ, राग और द्वेष-ये सारे-के-सारे उसके आन्तरिक कर्म के परिणाम हैं, आन्तरिक व्यक्तित्व के परिणाम हैं। कर्म की दो प्रमुख प्रकृतियां हैं-जीव-विपाकी और पुद्गल-विपाकी। पहली प्रकृति का जीव में परिपाक होता है। दूसरी प्रकृति का पुद्गल के रूप में परिपाक होता है। शरीर मिलता है, वचन मिलता है, मन मिलता है। ये सब पुद्गल-विपाकी प्रकृति के परिणाम हैं। कर्म के बिना इनकी व्याख्या, नहीं की जा सकती। ___मनोविज्ञान ने आन्तरिक व्यक्तित्व की बहुत सारी व्याख्याएं प्रस्तुत 278 कर्मवाद
SR No.004275
Book TitleKarmwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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