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________________ बोला-हां, मेहरवान! आप ठीक फरमाते हैं। जहां-जहां धान जुड़ता है, वहां संघर्ष होता है। जहां-जहां कर्म है, वहां संघर्ष होना अनिवार्य है। उसे टाला नहीं जा सकता। प्रश्न होता है कि क्या समाज और व्यक्ति को निरंतर समस्याओं में ही जीना है? क्या ऐसा कोई उपाय भी है, जिससे समाज और व्यक्ति शांतिपूर्ण जीवन जी सके? मैं श्मशान की शान्ति की बात नहीं कर रहा हूं। मैं मानसिक तनाव से मुक्त होकर एक सौहार्दपूर्ण, मैत्रीपूर्ण जीवन की बात कर रहा हूं। प्रतिप्रश्न होता है कि क्या यह सम्भव है? हां, यह सम्भव है। तभी सम्भव है, जब कर्म की पृष्ठभूमि में अकर्म बना रहे। ज्ञान की पृष्ठभूमि में ध्यान बना रहे। कोरा ज्ञान अनेक खतरे पैदा करता है। पर जब ज्ञान के साथ ध्यान रहता है तो सारे खतरे टल जाते हैं। सचाई यह है कि कोई भी कर्म अकर्म के बिना चल नहीं सकता। हम मानते हैं कि हृदय धड़कता है, इसलिए आदमी जीता है। यह एक सचाई है। पर इनके पीछे यह बड़ी सचाई है कि हृदय नहीं धड़कता, इसलिए वह भी चलता है और आदमी भी जीता है। हृदय धड़कता है, विश्राम लेता है, फिर धड़कता है, फिर विश्राम करता है, इसीलिए धड़कता है। यदि हृदय विश्राम न करे, निन्तर धड़कता रहे तो वह टूट जाएगा। हृदय इसलिए नहीं टूटता कि वह धड़कता है और विश्राम लेता है। विश्राम और श्रम-दोनों साथ-साथ चलते हैं। इसी प्रकार कर्म और अकर्म-दोनों साथ-साथ चलते हैं। अकर्म न हो तो कर्म चल नहीं सकता। एक आदमी सोचता है और यदि वह निरन्तर सोचता ही रहे तो अधिक दिनों तक सोच नहीं सकता। वह सोच नहीं सकेगा। अतियोग हो जाएगा। अतियोग का अर्थ है-समाप्ति। एक आदमी चलना प्रारम्भ करे तो कुछ दिनों तक चल सकता है, पर लम्बे दिनों तक चल नहीं पाएगा। थक जाएगा, बैठ जाएगा। इसीलिए प्रत्येक क्रिया के साथ अक्रिया का योग होना चाहिए। क्रिया और अक्रिया, कर्म और अकर्म, प्रवृत्ति और निवृत्ति-इन युगलों का योग होता है, तब क्रिया अच्छी होती है, कर्म अच्छा होता है और प्रवृत्ति अच्छी होती है। हम इस सचाई को अकर्म और पलायनवाद 253
SR No.004275
Book TitleKarmwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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