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________________ 3. प्रत्यक्ष-बोध, 4. चेतना के द्वारा पदार्थ का परिवर्तन। ये परा-मनोविज्ञान के चार मूल तत्त्व हैं। इसमें भाव एक शक्तिशाली साधन है जिसके द्वारा परमाणुओं का संघटन-विघटन होता है, परिवर्तन होता है। भय अभय में बदल जाता है। क्रोध करने वाला आदमी शान्त' हो जाता है। नशा करने वाला नशे से घृणा करने लग जाता है। यह सारा घटित होता है भाव-परिवर्तन के द्वारा। भाव-परिवर्तन का महत्त्वपूर्ण सूत्र है-अनुप्रेक्षा। कायोत्सर्ग की मुद्रा में अनुप्रेक्षा का प्रयोग न केवल शारीरिक बीमारियों को मिटाने में सक्षम है, बल्कि मानसिक बीमारियों को मिटाने में भी इसका बहुत बड़ा प्रयोग है। एक व्यक्ति अत्यन्त शोकग्रस्त रहता है। निरन्तर चिन्तित रहता है। इस भाव को बदला जा सकता है। मोह-कर्म से मूर्छा पैदा होती है, शोक और क्रोध पैदा होता है। मूर्छा के बिना न शोक होता है और न क्रोध होता है, कुछ भी नहीं होता। भाव-परिवर्तन की प्रक्रिया के द्वारा, अनुप्रेक्षा के द्वारा शोक को प्रसन्नता में और क्रोध को क्षमा या शान्ति में बदला जा सकता है। हर्ष और शोक का एक युगल है। दोनों जुड़े हुए हैं। इनको अलग नहीं किया जा सकता। जहां हर्ष होता है, वहां शोक भी होता है और जहां शोक होता है, वहां हर्ष भी होता है। जिसने शोक का अनुभव किया है, उसे हर्ष का अनुभव भी करना होगा। जिसने हर्ष का अनुभव किया है, उसे शोक का अनुभव भी करना होगा। थावच्चापुत्र ने देखा कि पड़ोसी बच्चे के जन्म के उपलक्ष में हर्ष से झूम रहे हैं। वह क्षण हर्ष का था। कुछ घंटों बाद बच्चा मर गया। सारा कुटुम्ब शोक के महासागर में डूब गया। वह क्षण शोक का था। एक क्षण हर्ष का होता है तो दूसरा क्षण शोक का हो जाता है। और एक क्षण शोक का होता है तो दूसरा क्षण हर्ष का हो जाता है। ___लाभ के क्षणों में आदमी परम प्रसन्नता का अनुभव करता है। पदार्थ की प्राप्ति उसमें हर्ष उत्पन्न करती है। आदमी हर्ष के क्षणों में सब कुछ भूल जाता है। वह यह भी भूल जाता है कि पदार्थ का संयोग हआ है तो निश्चित ही उसका वियोग भी होगा। जब वियोग होता है 248 कर्मवाद
SR No.004275
Book TitleKarmwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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