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________________ पद-चिह्न रह जाते हैं ध्यान के साथ बदलने की बात जुड़ी हुई है। पूरी साधना और कर्म की आराधना के साथ बदलने का क्रम होता है। यदि ध्यान और धर्म की आराधना के द्वारा परिवर्तन घटित न हो, व्यक्ति न बदले तब वह ध्यान और धर्म की आराधना मात्र एक मनोरंजन बन जाती है। बदलना व्यक्तित्व-निर्माण की प्रक्रिया का एक महत्त्वपूर्ण अंग हैं। व्यक्तित्व के निर्माण का अर्थ है कि जो अवांछनीय तत्त्व हैं, वे जीवन से निकल जाएं और जो वांछनीय तत्त्व हैं, वे जीवन में आएं यह है जीवन का निर्माण। हर व्यक्ति बहुत बड़े खजाने को साथ लेकर चलता है। जब आदमी चलता है, तब कोरा शरीर ही नहीं चलता, उसके साथ मन भी चलता है और इंद्रियां भी चलती हैं। मन और इन्द्रियां ही नहीं, बहुत बड़ा भण्डार चलता है। उस भण्डार के तीन मुख्य घटक हैं-संस्कार, वासनाएं और धारणाएं। कर्मशास्त्र की भाषा में कहें तो वह है कर्म का भण्डार। इतना बड़ा खजाना है कि चेतना के एक-एक अणु पर अनन्त-अनन्त परमाणु लगे हुए हैं। आनुवंशिकी विज्ञान के अनुसार प्रत्येक जीव में लाखों-लाखों संस्कार होते हैं। किन्तु कर्मशास्त्र के अनुसार चैतन्य के एक अणु पर अनन्त-अनन्त कर्म परमाणु और असंख्य संस्कार संलग्न हैं। इतना बड़ा भण्डार हमारे भीतर है। जब इतना बड़ा भण्डार साथ में चलता है, कितना भार होगा व्यक्ति के सिर पर, नहीं कहा जा सकता। आश्चर्य होता है कि आदमी इतना बोझ कैसे ढो रहा है? इतना बोझ न गधा ढो सकता है, न ऊंट और न हाथी ढो सकता है। आज का कोई वाहन इतना बोझ ढोने में समर्थ नहीं। पर आदमी का मस्तिष्क 218 कर्मवाद
SR No.004275
Book TitleKarmwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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