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________________ जा सकता। ये सारी कठपुतलियां हैं। इनको नचाने वाला कोई और है। वह भीतर में बैठा है। वह पर्दे के पीछे छिपा हुआ है और वह है कर्म। कर्म है जैविक विशेषता, व्यक्ति की अपनी विशेषता। कर्म नितान्त व्यक्तिगत होता है। प्रत्येक व्यक्ति का अपना-अपना कर्म और अपना किया हुआ कर्म। दूसरा कोई उत्तरदायी नहीं है। स्वयं व्यक्ति ने उसे किया है और स्वयं व्यक्ति को ही वह भोगना है। अपना कृत कर्म पर्दे के पीछे कार्यरत है। सबको भोगना पड़ता है। यह ऋण है। इसको चुकाना पड़ता है। जो कर्म किए हैं, जिन कर्म परमाणुओं का संचय किया है, उनको भोगना ही पड़ता है। कर्म उत्प्रेरक है। यहां सब कुछ उसके द्वारा घटित होता है। अकारण कुछ भी नहीं होता। न दूसरे ने कुछ किया है, न किसी ने कुछ थोपा है, स्वयं ने किया है और स्वयं ही उसका उत्तरदायी है। एक ज्योतिषी था। उसका बेटा खो गया। वह पुलिस स्टेशन पहुंचा और इंस्पेक्टर से बोला-मेरा बेटा खो गया है। आप उसको खोज लाएं। मैं आपका काम कर दूंगा। आपकी जन्मकुण्डली बनाकर आपके भविष्य का यथार्थ बता दूंगा। इंस्पेक्टर बोला-मेरा भविष्य बतला सकते हो तो अपने बेटे को ही खोज लो। ज्योतिषी बोला-बात तो ठीक है। पर मैं अपने बेटे को खोजूंगा तो मुझे फीस कौन देगा? मेरा संकल्प है कि मैं बिना फीस किसी का काम नहीं करता। मुफ्त में काम करना मुझे नहीं सुहाता। ___कर्म का भी सिद्धान्त है। वह मुफ्त में कार्यरत नहीं होता। आदमी ने उसे किया है, पूरी फीस चुकाई है। अपना ही कृत और अपना ही भोग। कर्म एक ऐसा अभिनेता है, जो पर्दे के पीछे बैठा-बैठा निरन्तर अभिनय कर रहा है। इसका अभिनय कभी बन्द नहीं होता। सोते-जागते, दिन में, रात में यह निरन्तर क्रियाशील रहता है। जब हमारी पहुंच कर्म तक हो जाती हैं, तब एक समस्या का समाधान हो जाता है और हम सब यह समझने लग जाते हैं कि हमारी सभी प्रवृत्तियों, विचारों, चिन्तनों और भावों के साथ एक छिपा हुआ अस्तित्व या तत्त्व जुड़ा हुआ है। जब तक उसको बदला नहीं जाता, तब तक सामने घटित होने वाली पर्दे की पीछे कौन? 205
SR No.004275
Book TitleKarmwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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