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________________ में प्रयत्न करना चाहिए। इतना-सा संवाद चला। इतना-सा स्वप्न। गुरुदेव की प्रेरणा ने काम किया। मैं उसकी खोज में जुट गया। सूत्र मिला। प्रयोग प्रारंभ किया और पन्द्रह वर्ष पश्चात् प्रेक्षा-ध्यान की पूरी प्रक्रिया सामने प्रस्तुत हो गई। प्रेक्षा-ध्यान की प्रक्रिया से धर्म-क्रांति की बात भी चरितार्थ हो गई और धर्म के विषय में जो रूढ़ धारणाएं थीं, उनमें परिवर्तन आ गया। एक युवक ने लिखा-धर्म और विज्ञान का इतना सुन्दर समन्वय हमने अन्यत्र नहीं देखा, जैसा मुझे प्रेक्षा-ध्यान की प्रक्रिया में दृष्टिगोचर हुआ। प्रेक्षा-ध्यान का प्रयोग वैज्ञानिक धरातल पर आधृत है। इसमें अध्यात्म योग, कर्मवाद आदि प्राचीन विधाओं का समावेश है तो साथ-ही-साथ शरीरशास्त्र, शरीर-क्रियाशास्त्र, शरीर-रसायनशास्त्र, मानसशास्त्र आदि-आदि आधुनिक विधाओं का भी पूरा समावेश है। एक शब्द में कहा जा सकता है कि यह धर्म और विज्ञान का सुन्दर समन्वय है। ___आज यह सद्यस्क आवश्यकता है कि आज की समस्याओं से निपटने के लिए, समस्याओं का समाधान देने के लिए प्रत्येक विषय का वैज्ञानिक दृष्टि से विश्लेषण किया जाए और तर्क की कसौटी पर उसे पूरा कसा जाए। आज केवल अंधविश्वास, रूढि या मान्यता से काम नहीं चल सकता। आज जरूरी है परिवर्तन और उससे भी अधिक जरूरी है कर्मवाद के सिद्धांत को हृदयंगम करना। कर्मवाद वैज्ञानिक सिद्धांत है। परन्तु उसकी सही जानकारी न होने के कारण उसको भी रूढ़ मान्यता के आधार पर ही समझा जा रहा है। यदि कर्मवाद को सही रूप में समझा जाता तो. आज अनेक धारणाएं सामने आ जातीं। - दिल्ली विश्वविद्यालय में एक संगोष्ठी का आयोजन था। विषय था प्रेक्षा-ध्यान। वाइस चांसलर तथा अनेक प्रोफेसर, लेक्चरर इस गोष्ठी में भाग ले रहे थे। मैंने प्रेक्षा-ध्यान की वैज्ञानिक पृष्ठभूमि प्रस्तुत करते हुए अनेक चर्चा-बिन्दु प्रस्तुत किए। अन्त में वाइस चांसलर ने आभार व्यक्त करते हुए कहा-आज मैं पहली बार किसी भारतीय दार्शनिक अथवा जैन मुनि के मुंह से 'जीन' आदि के विषय में इतनी प्रामाणिक चर्चा परिवर्तन का सूत्र 167
SR No.004275
Book TitleKarmwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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