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________________ थी, उसे मैं गलत कर चुका हूं। मैं उसे बदल चुका हूं। अब तुम उसे क्या देखोगे?' पुरुषार्थ के द्वारा व्यक्ति अपनी जन्म-कुण्डली को भी बदल देता है। ग्रहों के फल-परिणामों को भी बदल देता है, भाग्य को बदल देता है। इस दृष्टि से मनुष्य का ही कर्तृत्व है, उत्तरदायित्व है। महावीर ने पुरुषार्थ के सिद्धान्त पर बल दिया, पर एकांगी दृष्टिकोण की स्थापना नहीं की। उन्होंने सभी तत्त्वों के समवेत कर्तृत्व को स्वीकार किया, पर उत्तरदायित्व किसी एक तत्त्व का नहीं माना। ___ भगवान् महावीर के समय की घटना है। शकडाल नियतिवादी था। भगवान् महावीर उसके घर ठहरे। उसने कहा-'भगवन् ! सब कुछ नियति से होता है। नियति ही परम तत्त्व है। भगवान महावीर बोले-'शकडाल! तुम घड़े बनाते हो। बहुत बड़ा व्यवसाय है तुम्हारा। तुम कल्पना करो, तुम्हारे आंवे से अभी-अभी पककर पांच सौ घडे बाहर निकाले गए हैं। वे पड़े हैं। एक आदमी लाठी लेकर आता है और सभी घड़ों को फोड़ देता है। इस स्थिति में तुम क्या करोगे?' . शकडाल बोला-'मैं उस आदमी को पकड़कर मारूंगा, पीढूंगा।' महावीर बोले-'क्यों?' शकडाल ने कहा-'उसने मेरे घड़े फोड़े हैं, इसलिए वह अपराधी है।' महावीर बोले-'बड़े आश्चर्य की बात है। सब कुछ नियति करवाती है। वह आदमी नियति से बंधा हुआ था। नियति ने ही घड़े फुड़वाए हैं। उस आदमी का इसमें दोष ही क्या है?' यह चर्चा आगे बढ़ती है और अन्त में शकडाल अपने नियति के सिद्धान्त को आगे नहीं खींच पाता, वह निरुत्तर हो जाता है। पुरुषार्थ का अपना दायित्व है। कोई भी आदमी यह कहकर नहीं बच सकता कि मेरी ऐसी ही नियति थी। हमें सचाई का, यथार्थता का अनुभव करना होगा। इस चर्चा का निष्कर्ष यह है कि अप्रमाद बढ़े और प्रमाद घटे, जागरूकता बढ़े और मूर्छा घटे। पुरुषार्थ का उपयोग सही दिशा में बढ़े और गलत दिशा में जाने वाला पुरुषार्थ टूटे। हम अपने उत्तरदायित्व का अनुभव करें। अतीत से मुक्त वर्तमान 171
SR No.004275
Book TitleKarmwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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