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________________ अतीत से बंधा वर्तमान कर्म-सिद्धान्त में यह प्रतिपादित है और कर्मवाद को मानने वाला व्यक्ति इस धारणा से बद्ध हो जाता है कि मनुष्य का पूरा व्यक्तित्व, उसका पूरा वर्तमान अतीत से बंधा हुआ है। अतीत की जकड़ और पकड़ को छोड़ने में वह समर्थ नहीं है। यह धारणा, अकारण नहीं है। जब हम अपने जीवन के सभी पक्षों पर दृष्टिपात करते हैं और उन पक्षों को जिस भाषा और उदाहरण के द्वारा हमें समझाया गया है, उस परिप्रेक्ष्य में यह धारणा सहज ही बन जाती है। जीवन के दो महत्त्वपूर्ण पक्ष हैं-ज्ञान और दर्शन। ये दोनों आवृत्त हैं। ज्ञान भी आवरण से मुक्त नहीं है और दर्शन भी आवरण से मुक्त नहीं है। कांच के दृष्टान्त से इसे समझाया गया है कि कांच में प्रत्येक व्यक्ति अपना प्रतिबिम्ब देख सकता है। जब कांच पर पर्दा डाल दिया जाता है तो प्रतिबिम्ब दिखाई नहीं देता। जब कांच अन्धा हो जाता है तब भी उसमें प्रतिबिम्ब नहीं पड़ता। जब कांच हिलता-डुलता रहता है तब भी प्रतिबिम्ब स्पष्ट नहीं होता। ज्ञान की असीम शक्ति है। वह आवृत्त है। इससे ही सहज यह धारणा बनती है कि हमारा ज्ञान स्वतंत्र नहीं है। हम स्वतंत्र नहीं हैं। हमारी चेतना निरवकाश नहीं है। उसके अवकाश पर पर्दा है, बाधा है। हमारी दर्शन की शक्ति भी स्वतंत्र नहीं है। इसे उदाहरण से इस प्रकार समझाया गया कि एक व्यक्ति राजदरबार में राजा से भेंट करना चाहता था। वह राजद्वार पर आया और सीधा भीतर जाने लगा। द्वारपाल ने उसे रोक दिया। इसी प्रकार हमारे दर्शन को भी एक द्वारपाल रोके हुए है। दर्शन की शक्ति अवरुद्ध है।
SR No.004275
Book TitleKarmwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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