________________ कर्मवाद को मानने वाले कर्म को उत्तरदायी बताते हैं। भला-बुरा कुछ भी होता है, वे सब कुछ कर्म पर डाल देते हैं। अच्छे का उत्तरदायित्व कर्म पर डालते हैं, बुरे का उत्तरदायित्व कर्म पर डालते हैं। सीधी बात कहते हैं-मैं क्या करता, कर्म में ऐसा ही लिखा था। कर्मवादी अपने आपको बचाकर कर्म को उत्तरदायी मानते हैं। आदमी बच गया, कर्म फंस गया। ___'हम क्या करें, कर्म में ऐसा ही लिखा था'--इस मिथ्या धारणा ने अनेक भ्रांतियां पैदा की हैं। इस धारणा ने गरीबी, बीमारी, दुर्व्यवस्था और अज्ञान को बढ़ाने में सहारा दिया है, आलम्बन दिया है, इन्हें टिकाए रखा है। कर्मवाद को एकाकी उत्तरदायी मान लेना गलत धारणा है। कर्मवाद व्यापक सिद्धान्त है। कालवाद, स्वभाववाद और नियतिवाद-ये इतने व्यापक नहीं हैं, जितना व्यापक है कर्मवाद! ईश्वरवादी भी कर्मवाद को स्वीकार करते हैं और अनीश्वरवादी भी कर्मवाद को स्वीकार करते हैं। आदमी जैसा कर्म करता है, वैसा ही उसे भुगतना पड़ता है। यह तथ्य इससे समझाया जाता है कि आदमी के पुरुषार्थ का दीप बुझ जाता है और वह जाने-अनजाने इस अंधकार में भटक जाता है। वह मानने लग जाता है कि मैं असहाय हूं। मैं कुछ कर नहीं सकता। जैसा पहले का कर्म-फल है वैसा ही मुझे प्राप्त होता रहेगा। ___मनुष्य में कुछ विशेषताएं होती हैं। उसमें कुछ विशेष गुण हैं। ज्ञान, दर्शन, चारित्र, शक्ति, क्षमता, कर्तृत्व-ये उसके गुण हैं। उसमें सुख-दुःख, लाभ-अलाभ, जन्म-मृत्यु, बड़प्पन-छुटपन आदि होते हैं। उसमें शरीरगत विशेषताएं होती हैं। कोई काला है, कोई गोरा है, कोई नाटा है, कोई लम्बा है, कोई सुरूप है, कोई कुरूप है-ये सारी बातें कर्म के साथ जोड़ी गई हैं। इनको समझाने के लिए ऐसे-ऐसे उदाहरण दिए जाते हैं कि व्यक्ति के मन में यह संस्कार सहज रूप में जम जाता है कि मैं कुछ भी नहीं हूं। सब कुछ करने वाला है कर्म। सारा बोझ कर्म पर है। मैं तो भारहीन हूं, हल्का-फुल्का हूं। मेरा कुछ भी नहीं है। यह धारणा बन जाती है। एकांगी दृष्टिकोण पनप जाता है। मैं मानता हूं कि जिन उदाहरणों के द्वारा ये तथ्य समझाए जाते 152 कर्मवाद