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________________ हो जाती है और तब उद्दीपकों में उद्दीपकता नष्ट हो जाती है। उस समय न गाली उद्दीपक बनती है, न मार और प्रहार उद्दीपक बनता है। ये सारे उद्दीपक प्रसन्नता को उद्दीपित करने वाले बन जाते हैं। ____एकनाथ पर एक व्यक्ति ने इक्कीस बार थूका और वे अविचलित रहते हुए इक्कीस बार गोदावरी में स्नान करने गए और उन्होंने इसे अपना सौभाग्य माना। क्या सामान्य व्यक्ति के लिए ऐसा शांत रहना संभव है? सामान्य भूमिका में जीने वाला व्यक्ति ऐसा नहीं कर सकता। किन्तु जिसकी चेतना बदल जाती है, वही व्यक्ति इतना शान्त रह सकता है। आदमी वातावरण से बंधा हुआ है, परतंत्र है। यह भी हम जानते हैं कि आदमी कितना स्वतंत्र है, उद्दीपकों से कितना मुक्त है और वातावरण से कितना अप्रभावित रहता है। दोनों पक्ष हैं। एक पक्ष है आदमी की स्वतंत्रता का और एक पक्ष है आदमी की परतंत्रता का। जब तक चेतना परिष्कृत या परिमार्जित नहीं होती, तब तक आदमी परतंत्रता का जीवन जीता है। जब चेतना परिष्कृत और सुसंस्कृत हो जाती है तब आदमी स्वतंत्रता का जीवन जीने लग जाता है। ये दोनों पहलू-स्वतंत्रता और परतंत्रता-वातावरण से जुड़े हुए हैं। मनुष्य की परतंत्रता का एक कारण रासायनिक प्रभाव भी है। शरीर में अनेक प्रकार के रसायन बनते हैं। मस्तिष्क रसायनों का प्रचुर उत्पादन करता है। वह रसायनों का 'सुपर प्लांट है। ग्रंथियां रसायन पैदा करती हैं। पिच्यूटरी ग्लैण्ड बारह प्रकार के रसायन निर्मित करती है। अन्यान्य ग्रन्थियां भी रसायनों की निर्मात्री हैं। रसायन दो प्रकार के होते हैं-बाहरी रसायन और भीतरी रसायन। दोनों प्रकार के रसायन आदमी के व्यवहार और आचरण को प्रभावित करते हैं। किसी व्यक्ति में क्रोध, भय, घृणा का आवेग उभरता है तो एक मनोवैज्ञानिक कहेगा कि आवेगों का दायित्व मनुष्य पर नहीं है। भीतर के रसायन इसके लिए उत्तरदायी हैं। इस दृष्टि से कहा जा सकता है कि प्रत्येक,आदमी एक प्रकार से रासायनिक जीवन जी रहा है। अभी-अभी 138 कर्मवाद
SR No.004275
Book TitleKarmwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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