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________________ कारण नहीं हैं, वहां लू लगती है। लू लगना या न लगना कर्म के अधीन नहीं है। किन्तु लूं लगती है, इसके कारण असातवेदनीय कर्म का उदय हो जाता है। सर्दी में ब्रोंकाइटिस आदि बीमारियां होती हैं। उनके कारण असातवेदनीय कर्म का उदय होता है। ठंडे देश का आदमी गोरा होगा, उष्ण देश का आदमी काला और कुछ देशों के आदमी उजले होंगे। गोरा होना, काला होना और उजला होना-यह नामकर्ण के कारण नहीं है किन्तु इसमें भौगोलिकता और प्रादेशिकता का निमित्त है। बहुत सारी घटनाएं ऐसी हैं जिनके कारण कर्म का विपाक होता है किन्तु कर्म के विपाक के कारण ये घटनाएं घटित नहीं होती। दो शब्द हैं-कर्म और नो-कर्म। नो-कर्म वह है जो कर्म तो नहीं है किन्तु कर्म का सहायक है। भौगोलिकता, वातावरण, पर्यावरण, परिस्थितियां-ये सारे नो-कर्म हैं। ये कर्म नहीं, कर्म के उदय में सहायक तत्त्व हैं। हम यह तथ्य हृदयंगम कर लें कि प्रत्येक घटना कर्म से ही घटित नहीं होती। इसलिए हम पूर्णरूप से परतंत्र नहीं हैं। यदि प्रत्येक क्रिया कर्म से ही घटित होती-विमान की दुर्घटना हो वह भी कर्म से, दो मोटरों की टहराहट हो वह भी कर्म से, अतृप्ति हो वह भी कर्म से, सारे प्राकृतिक प्रकोप हों वे भी कर्म से-यदि ऐसा होता है तो कर्म का वैसा ही साम्राज्य हो जायेगा जैसा ईश्वर का सारा साम्राज्य माना जाता है। उसका भी सर्व-शक्ति-संपन्न साम्राज्य हो जायेगा। कर्म ही सब कुछ हो जायेगा। फिर हम चाहे ईश्वर को माने या कर्म को-कोई अन्तर नहीं होगा। केवल नाम का अन्तर होगा। किन्हीं लोगों ने सर्व-शक्ति-सम्पन्न सत्ता को ईश्वर कह दिया और किन्हीं ने सर्व-शक्ति-संपन्न सत्ता को कर्म कह दिया। सर्व-शक्ति-संपन्न सत्ता में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। कर्म सर्व-शक्ति-संपन्न सत्ता नहीं है। उसकी अपनी सीमा है। वह आत्मा पर प्रभाव डालता है किन्तु उसी आत्मा पर प्रभाव डलता है जिसमें राग-द्वेष है। राग-द्वेष-रहित चेतना पर कर्म का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। प्रभाव वह अपनी सीमा में ही डालता है। दूसरे क्षेत्रों में वह अपना प्रभाव नहीं डाल सकता। कर्म की सार्वभौम सत्ता नहीं है। स्वतंत्र या परतंत्र? 117
SR No.004275
Book TitleKarmwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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