SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 123
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रश्न होता है कि क्या जो कुछ भी घटित होता है वह सब कर्म से नियंत्रित ही है? उसी का परिणाम मात्र है? यदि ऐसा है तो फिर किसी को दोष नहीं दिया जा सकता। कोई झूठ बोलता है, कोई चोरी करता है, कोई डाका डालता है, तो यह सब करने वाले का दोषी नहीं है, क्योंकि यह सब पूर्ववर्ती कर्म का परिणाम है। इसमें किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। किसी पर चोट की और उसे यह समझाया कि भाई! यह तुम्हारे पूर्वार्जित कर्म का ही परिणाम है, कर्म का ही योग है-ऐसा कहकर चोट करने वाला बच सकता है। वह दोषी नहीं हो सकता। पूर्ववर्ती कर्म ही तो उससे ये सारी क्रियाएं करवा रहे हैं तो फिर वह क्या करे? यह सारा भ्रम है। हर अपराधी अपने अपराध को छिपाने का प्रयत्न करता है, उससे बच निकलने का प्रयास करता है। वह अपने आपको निर्दोष मानता है। वह कह सकता है-मैंने कुछ भी नहीं किया। सब कुछ कर्म करवाता है। जैसा कर्म है वैसा करना ही पड़ता है। . यह धारणा सही नहीं है कि जो कुछ घटित होता है वह सब कर्म से ही होता है। व्यक्ति की अपनी स्वतंत्र सत्ता भी है। ऐसी अनेक घटनाएं घटित होती हैं जो पहले के कर्मों से नियंत्रित नहीं होती। - स्थानांग सूत्र में रोग की उत्पत्ति के नौ कारण बतलाए गए हैं 1. निरंतर बैठे रहना। 2. अहितकर भोजन करना। अति भोजन करता। 3. अति निद्रा। 4. अति जागरण। 5. मन का निरोध करना। 6. प्रस्रवण का निरोध करना। 7. पंथगमन। 8 भोजन की प्रतिकूलता। 6 कामविकार। इन कारणों से रोग की उत्पत्ति हो सकती है। किन्तु इनमें एक भी कारण ऐसा नहीं है जिसे हम पूर्व कर्म-कृत कह सकें। अधिक आहार स्वतंत्र या परतंत्र? 113
SR No.004275
Book TitleKarmwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy