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________________ आवेग-चिकित्सा कुशल चिकित्सक वह होता है जो रोग, रोग के हेतु, आरोग्य और आरोग्य के हेतु-इन चारों को जानकर रोग की चिकित्सा करता है। कुशल साधक वह होता है जो कर्म, कर्म के बीज, कर्म-मक्ति और कर्म-मक्ति के हेत को जानता है। कुशल साधक वह होता है जो बंध, बंध के हेतु, बंध-मुक्ति और बंध-मुक्ति के हेतु को जनता है। जो इन सबको भली-भांति जानकर कर्म की चिकित्सा करता है, वह कुशल साधक होता है। कर्म जानना उसके लिए इसलिए जरूरी है कि उसको जाने बिना आध्यात्मिक विकास नहीं होता। उसकी आध्यात्मिक चेतना के विकास में जो बाधक है, वह है कर्म। अब यदि वह अपने बाधक तत्त्व को नहीं जानता तो अपनी बाधा मिटा नहीं सकता। आध्यात्मिक चेतना का विकास कर नहीं सकता। इसलिए कर्म को जानना जरूरी है। दूसरे शब्दों में, बंध को जानना जरूरी है। बंध या कर्म को जानना ही पर्याप्त नहीं है। उसके हेतु को जाने बिना कुछ नहीं होता। यदि कर्म या बंध के हेतु को नहीं जाना जाता तो कर्म या बंध को समाप्त नहीं किया जा सकता। कर्म का बीज है-राग-द्वेष। जब तक राग और द्वेष को नहीं जाना जाता, तब तक राग और द्वेष से होने वाले जीव के परिणामों को, जीव की विविध परिणतियों को नहीं जाना जा सकता। कर्म की चिकित्सा नहीं हो सकती। इसलिए कर्म को जानना जरूरी है, कर्म-बीज को जानना भी जरूरी है। दोनों को जान लिया किन्तु यदि कर्म-मुक्ति और कर्म-मुक्ति के हेतु को नहीं जाना तो कर्म की चिकित्सा नहीं हो सकती। कर्म-मुक्ति का हेतु है-संवर और निर्जरा। जब ध्यान के द्वारा संवर आवेग-चिकित्सा 6
SR No.004275
Book TitleKarmwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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