________________ 88888880 जीव विचार प्रकरण ARRERE इनमें से नीचे के सात राज प्रमाण में सात नरक भूमियाँ हैं जिनमें नारकी जीव निवास करते हैं, इस कारण इन्हें नरक पृथिवियाँ कहा जाता हैं। इस सात राज प्रमाण के भाग को अधोलोक भी कहा जाता हैं / सातों नरक पृथिवियों की लम्बाई समान है परन्तु चौडाई में तरतमता है और क्रमश: बढता हुआ नरक भूमियों का परिमाण है। जहाँ नारकी जीव अपने पाप कर्मों का अशुभ फल प्राप्त करते हैं, उसे नरक कहते है / इनमें सीमंतक आदि नरकावास है, उनमें नारकी जीव निवास करते हैं। प्रथम तीन नरक तक क्रूर परमाधामी देव वेदना एवं दुःख देते हैं। आगे के नरकों में नारकी जीव आपस में लड-झगड कर अपार दुःख प्राप्त करते हैं। उत्तरोत्तर नरकों में दुःख और पीडा बढती जाती है / प्रथम नरक के अपेक्षा दूसरी नरक में अधिक दुःख है और दूसरी नरक अपेक्षा तीसरी नरक में अधिक दुःख है। इसी प्रकार सातों नरकों के संदर्भ में समझना चाहिये। नारकी जीवों का जन्म कुंभी में होता है जो संकडे मुँह का एवं चौडे पेट वाला होता है। नारकी जीवों को परमाधामी देव तीक्ष्ण हथियार से कुंभी में से काट-काट कर निकालते हैं पर उनका वैक्रिय शरीर होने से वे टुकडे पुनः एक शरीर रूप हो जाते हैं। नरक में स्त्री-पुरुष नहीं होते हैं। वहाँ मात्र नपुंसक ही होते हैं। उनके प्रबल एवं तीव्र कामवासना का भाव होता है पर पूर्ति के साधन नहीं होने से वे अति दुःखी होते हैं। वहाँ सर्दी व तापमान अत्यधिक होता है। उन जीवों को यदिशीत ऋतु में हिमालय की चोटी पर सुलाया जाये तो वे शांति से सो जाये / गर्मी में यदि उठती हुई खतरनाक लपटों के मध्य रखा जावे तो भी प्रसन्नता का अनुभव हो। कहने का अर्थ इतना ही है कि वहाँ इतनी अधिक सर्दी एवं गर्मी है। नारकी जीव तीन ज्ञान से युक्त होते हैं - मतिज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान / जो मिथ्यात्वी होते हैं, उनके मतिअज्ञान, श्रुतअज्ञान एवं विभंगज्ञान होता है। ... मिथ्यात्वी नारकी वेदना से पीडित होकर क्रोधपूर्वक और अधिक कर्मों का बंधन करते हैं। जो नारकी सम्यक्त्वी होते हैं, वे अपने किये हुए दुष्कर्मों का प्रतिफल समझकर समता से दर्द को सहते हैं। -