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________________ START जीव विचार प्रकरण RBIRTERS संस्कृत छाया शंख कपर्दको गंडोलो जलौकाश्चन्दनकालस लहकादयः (लघुगात्री)। . मेहरकः कृमय: पूतरका द्वीन्द्रिया मातृवाहिकादयः // 15 // शब्दार्थ संख - शंख | कवड्डय - कौडी गंडुल - गंडोल | जलोय - जलौका, जोंक चंदणग - अक्ष, आयरिया अलस - भूनाग, केंचुए लहगाइ - लालयक आदि मेहरि - काष्ठ (लकडी के कीडे) किमि - कृमि पूयरगा - पूरा बेइन्दिय - द्वीन्द्रिय माइवाहाइ - मातृवाहिका आदि भावार्थ शंख, कौडी, गंडोल, जोंक, अक्ष, केंचुए, लालयक, काष्ठ के कीडे, कृमि, पूरा, मातृवाहिका आदि द्वीन्द्रिय जाति के जीव हैं // 15 // विशेष विवेचन प्रस्तुत गाथा में द्वीन्द्रिय जाति के कुछ भेद प्रस्तुत किये गये हैं। जिन जीवों के दोइन्द्रियाँ (स्पर्शनेन्द्रिय एवं रसनेन्द्रिय) होती हैं, वे द्वीन्द्रिय कहलाते हैं। द्वीन्द्रिय जीवों के गाथा में वर्णित भेद निम्नलिखित हैंशंख - वर्षा ऋतु में शंख नामक जीव अधिक संख्या में उत्पन्न होते हैं / इनका जन्म स्थान समुद्रादि हैं। शंख सफेद एवं बादामी वर्ण का होता है और उसके उपर बना शंख का आवरण सुरक्षा का काम करता है / जैसे ही किसी जीव के आक्रमण का भय उपस्थित होता है, वह जीव उसमें छिपकर अपनी सुरक्षा कर लेता है / निर्जीव शंख मंदिरों में एवं अन्य स्थानों में अनेक अवसरों पर बजाने के काम में आता हैं। . कौडी - इनका शारीरिक रुप-स्वरुप शंख के समान ही होता है / ये भी समुद्र में उत्पन्न
SR No.004274
Book TitleJeev Vichar Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar
PublisherManitprabhsagar
Publication Year2006
Total Pages310
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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