________________ जीव विचार प्रकरण AIRS संस्कृत छाया गूढशिरा-संधि पर्व समभंग महीरकं च छिन्नरूहं / साधारण शरीरं तद् विपरीतं च प्रत्येकं // 12 // शब्दार्थ गूढ - गुप्त (हो) सिर - नसें .. . संधि - संधियां, जोड पव्वं - पर्व, गांठे समभंग - (जिसको) तोडने से समान टुकडे हो अहीरगं - जिसके तंतु न हो च - और छिन्नरूहं - जिसको काटकर भी साहारण - साधारण (वनस्पतिकाय) बोने से उगे। तव्विवरियं - उसके विपरीत सरीरं - शरीर पत्तेयं - प्रत्येक (वनस्पतिकाय का) च - और भावार्थ .. - जिसकी नसें, जोड और पर्व गुप्त हो (स्पष्ट दिखाई न दें), जिसको तोडने से समान टुकडे हो, जिसके तंतु न हो, जो काटकर भी बोने से उगे, ये सब साधारण वनस्पतिकायिक जीवों के शारीरिक लक्षण हैं और इसके विपरीत प्रत्येक वनस्पतिकायिक जीवों के शारीरिक लक्षण जानने चाहिये // 12 // विशेष विवेचन प्रस्तुत गाथा मैं साधारण वनस्पतिकाय (शरीर) के लक्षण बताये गये हैं। साधारण शरीर को जानने / पहचानने के चार लक्षण हैं(१) जिसकी नसें, संधियां (जोड) एवं पर्व-गांठें गुप्त हो, सरलता से एवं स्पष्ट रुप से दृष्टिगत न हो, वह साधारण शरीर कहलाता है / उदाहरण - घीकुंआर में नसें, संधियां एवं पर्व होने पर भी इक्षुखण्ड (गन्ना) की गांठों, संधियों एवं पर्यों की भाँति स्पष्ट दिखाई नहीं देते हैं। (2) जिसको तोडने से समान भाग (टुकडे) हो। एरंड के पत्ते को तोडने से उसके आडे -