________________ - THIRSHAN जीव विचार प्रकरण RRRRRRRRRB बेफ्रिक रहिये / अपेक्षित सहयोग सदा उपलब्ध है आपको। वे तत्त्व ज्ञान के धनी पुरूष हैं। यद्यपि लोग कहते हैं कि वे बहुत कठोर हैं परंतु मैंने उन्हें निकटता से देखा है और मैं यह निःसंकोच कह सकता हूँ कि वे बाहर से जितने कठोर एवं तेज है, भीतर से उतने ही कोमल, सरल एवं मीठास से भरे है। उन्होंने अपनी विशिष्ट प्रज्ञा से श्रमसाध्य संपादन कर पुस्तक के गौरव में अभिवृद्धि की है। समयाल्पता एवं व्यस्तता के बीच जो उनका प्रेम भरा सहयोग मिला, वह आजीवन मेरे स्मृति कोष में सुरक्षित रहेगा। उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापन कर शब्दों के ससीम दायरे में उनके असीम आत्मीय भावों को कैद कर मैं अपने आपको गलत ही साबित करूंगा। वे इसी प्रकार शासन.की सेवा करते रहे, उनकी आत्मीयता सदैव प्राप्त होती रहे और साधना के द्वारा वे सिद्धत्व को उपलब्ध हो, यह मेरी अरिहंत देव से अभ्यर्थना साध्वी श्री शासनप्रभाश्रीजी म. एवं त्याग एवं वैराग के धनी शशिजी गोलेच्छा कुनूर का स्नेहिल सहयोग मेरे हृदयांगन में सदैव फूलों की भाँति खिलता रहेगा। प्रस्तुत पुस्तक के निर्माण में अप्रत्यक्ष-प्रत्यक्ष, हर सहयोगी के प्रति मेरी मंगलभावना है। जीव विचार प्रकरण के माध्यम से जीव जड और चेतन का, जीव और अजीव का भेद विज्ञान समझता हुआ अहिंसा एवं श्रुत उपासना के द्वारा आत्म-शुद्धि की सद्बुद्धि प्राप्त करें। सुज्ञ पाठक अंधकार से प्रकाश की ओर एवं मिथ्या से विश्वास की ओर बढे और क्रमशः शिवत्व एवं सिद्धत्व की सीढियाँ चढते हुए निर्वाण पद को प्राप्त करे। यही प्रकरण अध्ययन का परिणाम है और लेखन का सार्थक मूल्य मणि चरण रज मुनि मनितप्रभसागर