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________________ 80 जीव विचार प्रकरण 3 तत्त्वामृतम्... जीव विचार प्रकरण जीव तत्त्व प्रधान प्रकरण है जिसमें जीव तत्त्व का विशिष्ट विवेचन प्रस्तुत हुआ है। विवेचन गहरा एवं सरस होने से प्रस्तुत प्रकरण का स्वाध्याय प्रत्येक स्वाध्यायी के अनिवार्य-सा हो गया है। प्रत्येक भव्य जीव को सिद्धशिला के आरोहण का अधिकार है। अहिंसा एवं करूणा की नींव पर ही मोक्ष रूपी महल का निर्माण होता है और जीव तत्त्व के ज्ञान की शिला पर ही अहिंसा एवं करूणा की भव्य इमारत निर्मित होती है। पूज्य मुनि श्री मनितप्रभसागरजी म.सा. की दीक्षा पूर्व जब वे अशोक के नाम से हमारी ज्ञानशाला में तत्त्वज्ञान का स्वाध्याय कर रहे थे, तभी मुझे उनके समुज्वल भविष्य के बारे में पूर्वानुमान हो गया था। . उनकी दीक्षा हुए अभी मात्र 5 वर्ष हुए हैं। पर इन पाँच वर्षों का लेखा-जोखा देखा जाय तो मेरा अनुमान सत्य प्रतीत हो रहा है। वे संयम पालन में अत्यन्त दृढ हैं तो स्वाध्याय, चिंतन और लेखन में भी उतने ही अप्रमत्त हैं। मैं उन्हें हमेशा एक जिज्ञासु मुनि के रूप में देखता हूँ और अत्यन्त प्रसन्नता का अनुभव करता हूँ। * मैं इसके लिये गौरव का भी अनुभव करता हूँ कि वे मेरे छात्र रह चुके हैं। जीव विचार पर लेखन प्रारंभ करने से पूर्व ही मुझे उन्होंने कह दिया था कि संपादन आपको ही करना होगा। मैं उनके आत्मीयता एवं स्नेह से भीगे आग्रह को अस्वीकार नहीं कर सका। मैंने उनके प्रस्ताव को हृदय से थाम लिया। वैसे भी मैं पूज्य उपाध्यायश्री, पूज्य बहिन म. आदि से अत्यन्त भावनात्मक रूप से जुडा हुआ हूँ। इसलिये इन्कार का तो सवाल ही नहीं हो सकता था। मुझे इस पुस्तक के संपादन में अत्यन्त प्रसनन्ता का अनुभव हुआ है। इसमें उन्होंने
SR No.004274
Book TitleJeev Vichar Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar
PublisherManitprabhsagar
Publication Year2006
Total Pages310
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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