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________________ जीव विचार प्रकरण ISSETTE ही प्रस्तुत नहीं किया है, उन्होंने इस अर्धशतक लघुकाय ग्रंथ पर 900-950 प्रश्नों की विस्तृत हारमाला भी साथ जोड दी है। शब्दार्थ, भावार्थ, विषय-वस्तु का विवेचन इतना सहज, सरल और सुबोधगम्य है कि सामान्य जिज्ञासु भी इसे पढकर जीव के स्वरूप-भेद-प्रभेद का ज्ञान आसानी से प्राप्त कर सकता है। जीवविचार प्रश्नोत्तरी ने प्रस्तुत पुस्तक की उपयोगिता और मूल्यवत्ता में शतगुणित वृद्धि कर दी है। इस प्रश्नोत्तरी के माध्यम से लेखक ने हर छोटे-छोटे प्रश्नों को तो समाहित किया ही है पर गहरे एवं तात्त्विक प्रश्नों का समाधान भी विस्तार से किया है। बंधु मुनि मनितप्रभजी का एकलक्षी और अप्रतिम पुरूषार्थ प्रस्तुत पुस्तक में स्पष्ट झलक रहा है। इस ग्रंथ का संपूर्ण लेखन उन्होंने केवल 4 माह में करके सबको जैसे चमत्कृत और हत्प्रभ ही कर दिया है। मेरी स्मृति में तरंगित हो रहा है वैशाख शुक्ला 12, बुधवार का वह शुभ दिन, जब इस पुस्तक की लेखन यात्रा प्रारंभ हुई थी। आज के दिन ही प्रातः हमने पार्श्वमणितीर्थ, आदोनी से पूज्य गुरूदेव के साथ पूना-मुंबई हेतु चातुर्मास के लक्ष्य से विहार किया था। मेरे गुरूवर्या श्री पू. बहिन म. पूर्व संध्या को ही हमसे विपरीत अर्थात् बेंगलोर की दिशा में प्रस्थित हुए थे। छोटी-सी स्कूल वैशाख माह की प्रचंड गर्मी.., चिलचिलाती धूप... बरसती आग... थपेडे मारती लू...! उस दोपहर में स्वाध्याय प्रिय मुनि ने कुछ विश्राम करने की बजाय कलम उठाई और जीवविचार की प्रथम गाथा का विवेचन करते हए इसके लेखन का श्रीगणेश कर दिया। पदयात्रा ने ज्यों-ज्यों रफ्तार पकडी...कलम भी उसी रफ्तार से चलती रही। विहार यात्रा के साथ बिना रूकावट और बिना थकावट के वे अविराम-अविश्राम लेखन कार्य करते रहे। विहार चाहे जितना उग्र और लम्बा रहा हो, चाहे जितने लोगों का आवागमन और व्यस्तता भरा वातावरण रहा हो पर इन समस्त बाह्य अनुकूल वा प्रतिकूल स्थितियों से वे सदा अप्रभावित रहे। अपने संकल्प को निष्ठापूर्वक साकार करने में ही व्यस्त और मस्त रहे। एक ही लगन....एक ही ललक...! न कोई बात.... न कोई वार्तालाप! न
SR No.004274
Book TitleJeev Vichar Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar
PublisherManitprabhsagar
Publication Year2006
Total Pages310
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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