________________ HAMITam ASSISRO जीव विचार प्रकरण S HRESTHA बाधामृतम्............ जिस ग्रन्थ में जीव तत्त्व की विचारणा, विवेचना या मीमांसा हो, वह जीवविचार है। इस प्रकार ग्रंथ के नाम से ही इसकी विषय-वस्तु स्पष्ट हो जाती है। जीव विचार प्रकरण में विवेच्य विषय है-जीव।। जिनेश्वर परमात्मा ने जगत् के स्वरूप का विवेचन करते हुए कहा-षड्द्रव्यमय जगत् है। नौ तत्त्वों तथा षड्द्रव्यों में जीव तत्त्व या जीव द्रव्य ही मुख्य है। अगर संक्षेप में कहा जाय तो इस दृश्यमान जगत् में हमें केवल प्रकार के तत्त्व ही दृष्टिगोचर होते हैं- एक जीव, दूसरा अजीव / इन दो तत्त्वों के सिवाय तीसरा कोई तत्त्व इस जगत् में है ही नहीं। ' जीव और अजीव, इन दोनों का अपना स्वतंत्र अस्तित्व है, भिन्न स्वरूप और गुणधर्म है। जिनमें इच्छा, भावना, ज्ञान-दर्शन तथा सुख-दुख का संवेदन है, वे जीव हैं। इससे विपरीत जिनमें सुख-दुःखादि की अनुभूति नहीं, ज्ञान-दर्शनादि की शक्ति नहीं, वे अजीव हैं। इस लोक में अनंत जीव है। जो जीव अजीव के संयोग से मुक्त हो गये, वे सिद्ध बन गये। जो अजीव के संयोग से युक्त हैं, वे जीव संसारी हैं / यद्यपि जीव और अजीव दोनों सर्वथा स्वतंत्र द्रव्य है, सर्वथा पृथक् स्वभाव वाले हैं तथापि कर्मवशात् जीव पुद्गल-परमाणुओं से बने जड शरीर में एक होकर, एक रसीभाव, समरसी भाव होकर जीता है और यही संसार है। जब शरीर रूप अजीव या जड का संयोग सम्बन्ध टूटता है, जब जीव कर्मपुद्गल से मुक्त बनता है तब अशरीरी अवस्था, सिद्धावस्था, मुक्तावस्था को प्राप्त कर लेता है। परंतु इस सिद्धावस्था को प्राप्त करने से पूर्व जीव अनादिकाल से अनन्तकाल तक इस संसार में रहा है, अनन्तानन्त जन्म और पर्यायों को प्राप्त किया है। इस -