________________ र . SHRESTHESERT जीव विचार प्रकरण नारकी, देवों एवं मनुष्यों की योनियाँ गाथा चउरो-चउरो नारय-सुरेसु मणुआण चउदस हवंति / संपिंडिया य सव्वे, चुलसी लक्खाउ जोणीणं // 47 // अन्वय नारय-सुरेसु चउरो चउरो य मणुआण चउदस सव्वे संपिंडिया जोणीणं चुलसी लक्खाउ हवंति // 47 // संस्कृत छाया चतस्रश्चतस्रो नारकसुरेषु मनुष्याणाम् चतुर्दश भवन्ति / संपिंडिताश्च सर्वे चतुरशीतिर्लक्षास्तु योनीनाम् // 47 // शब्दार्थ चउरो - चार चउरो-चार नारक - नारकी की सुरेसु - देवताओं की मणुआण - मनुष्यों की चउदस - चौदह (लाख) हवंति - होती हैं संपिंडिया - मिलाने से (जोडने से) य - और . सव्वे - समस्त चुलसी - चौरासी लक्खाउ - लाख जोणीणं - योनियाँ भावार्थ नारकी एवं देवताओं की चार-चार लाख और मनुष्यों की चौदह लाख योनियाँ होती हैं। इन सब को मिलाने से चौरासी लाख योनियाँ होती हैं // 47 // विशेष विवेचन प्रस्तुत गाथा में नारकी, देवता एवं मनुष्यों की योनियाँ बताने के साथ कुल जीव योनियों का भी वर्णन है / /