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________________ - - - ERABARREST जीव विचार प्रकरण AESTHESETTER चउरो हवंति // 46 // संस्कृत छाया दश प्रत्येकतरूणां चतुर्दश लक्षा भवन्तीतरेषु / विकलेन्द्रियेषु द्वे द्वे चरस्रः पंचेन्द्रिय तिरिश्चाम् // 46 // शब्दार्थ दस - दस | पत्तेय -प्रत्येक तरुणं - वनस्पतिकाय की चउदस - चौदह लक्खा - लाख हवंति - होती हैं इयरेसु - विपरीत की विगलिंदिएसु - विकलेन्द्रियकी (साधारण वनस्पतिकायिक जीवों की) दो - दो दो - दो चउरो - चार पंचिंदि-पंचेन्द्रिय तिरियाणं - तिर्यंचों की भावार्थ - प्रत्येक वनस्पतिकायिक जीवों की एवं साधारण वनस्पतिकायिक जीवों की क्रमशः दस लाख एवं चौदह लाख योनियाँ होती हैं। विकलेन्द्रिय (द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरेन्द्रिय) जीवों की दो-दो लाख तथा पंचेन्द्रिय तिर्यंचों की चार लाख योनियाँ होती हैं / // 46 // - विशेष विवेचन प्रस्तुत गाथा में वनस्पतिकायिक विकलेन्द्रिय एवं पंचेन्दिय तिर्यंच की योनि संख्या का निरुपण है। प्रत्येक वनस्पतिकायिक जीवों की दस लाख एवं साधारण वनस्पतिकायिक जीवों की चौदह लाख योनियाँ होती हैं। विकलेन्द्रिय जीवों की दो-दो लाख योनियाँ होती हैं। पंचेन्द्रिय तिर्यंच प्राणियों की योनियाँ चार लाख होती हैं। -
SR No.004274
Book TitleJeev Vichar Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar
PublisherManitprabhsagar
Publication Year2006
Total Pages310
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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