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________________ BETE जीव विचार प्रकरण WHEATRE हो और मृत्यु प्राप्त न की हो / परिवार, पुत्र, धन, सत्ता, संपत्ति सब कुछ यहीं छोडकर जीव को संसार से रवाना होना पड़ा है / न कोई सुरक्षा देने में सक्षम है, न शरण देने में समर्थ है / आचारांग सूत्र के प्रथम सूत्र स्कंध के द्वितीय अध्ययन के प्रथम अध्याय में कहा गया है - णालं ते तव ताणाए वा, सरणाए वा, तुमंपि तेसिं णालं ताणाए वा सरणाए / न जीव को कोई त्राण दे सकता है, न शरण दे सकता है न जीव किसी को त्राण और शरण दे सकता है। शरण रुप केवल अरिहंत, सिद्ध, साधु और अरिहंत प्ररूपित धर्म ही है / ये चार शरण ही जीव को संसार सागर से तारने में समर्थ है / जीव ने शुद्ध धर्म, शुद्ध मार्ग को प्राप्त किये बिना अनंतकाल तक संसार में परिभ्रमण किया है। अनन्त बार प्राणों के वियोग का भयंकर दुःख सहना पड़ा है। पांचवें योनि द्वार का कथन एकेन्द्रिय जीवों की योनि संख्या गाथा तह-चउरासी लक्खा, संखा जोणीण होइ जीवाणं / पुढवाइणं चउण्हं पत्तेयं सत्त सत्तेव // 45 // अन्वय तह जीवाणं जोणीण संखा चउरासी लक्खा होइ पुढवाइणं चउण्हं पत्तेयं सत्त सत्तेव // 45 // संस्कृत छाया तथा चतुरशीतिर्लक्षा: संख्या योनीनां भवति जीवानाम् / पृथिव्यादीनां -चतुर्णाम् प्रत्येक सप्त सप्तैव // 45 / / शब्दार्थ तह - तथा चउरासी- चौरासी लक्खा - लाख, लक्ष | संखा - संख्या
SR No.004274
Book TitleJeev Vichar Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar
PublisherManitprabhsagar
Publication Year2006
Total Pages310
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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