________________ FRIYARBT जीव विचार प्रकरण NTERNET प्राण और आयुष्य प्राण रुप दस प्राण होते हैं। असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों में मन बल प्राण के अतिरिक्त नौ प्राण होते हैं। उपदेश का कथन गाथा एवं अणोरपारे संसारे सायरम्मि भीमम्मि / पत्तो अणंतखुत्तो-जीवेहिं अपत्त-धम्मेहिं // 44 // अन्वय अणोरपारे भीमम्मि संसारे सायरम्मि अपत्त- धम्मेहिं जीवेहिं एवं अणंतखुत्तो पत्तो // 44 // - संस्कृत छाया एवमनोरपारे संसारे सागरे भीमे। प्राप्तोऽनंतकृत्व जीवैरप्राप्त धर्मः // 44 // - शब्दार्थ एवं - इस प्रकार अणोरपारे - बिना आरपार के संसारे - संसार रुपी (में) सायरम्मि - समुद्र में भीमम्मि- भयंकर पत्तो - प्राप्त किया है अणंत - अनन्त खुत्तो - बार जीवेहिं - जीव ने अपत्तधम्मेहि - धर्म को प्राप्त किये बिना .. भावार्थ बिना आर-पार के अनादि अनन्त संसार रुपी भयंकर समुद्र में धर्म को प्राप्त किये बिना जीव ने इस प्रकार (जन्म-मरण, प्राण-वियोग) अनन्त बार प्राप्त किया है // 44 // विशेष विवेचन जीव अनादिकाल से संसार में भ्रमण कर रहा है / परमात्मा महावीर के वचन कहते हैं - इस संसार में सुई की नोंक जितनी जगह भी अवशेष नहीं है जहाँ जीव ने जन्म न लिया