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________________ ४संज्ञा और५संस्थान द्वार गाथा सव्वेसिंचउदह वासन्ना, सव्वे सुरायचउरंसा,। नर-तिरिछस्संठाणा, हुंडा विगलिदिनेरइया।।१२।। संस्कृत अनुवाद सर्वेषांचतस्त्रोदशवासंज्ञा,सर्वेसुराश्चचतुरंशा (रस्त्राः) नरतिर्यवःषट्संस्थाना. हुण्डका विकलेन्द्रियनैरयिकाः॥१२|| अन्वय सहित पदच्छेद सव्वेसिंचउवादहसन्नायसवेसुरा चउरंसा। नरतिरिछस्संठाणा, विगलिंदिनेरइया हुंडा॥१२॥ शब्दार्थ :दह-दस चउरंसा-समचतुरस्त्र संस्थानवाले वा-अथवा छ-छ सन्ना-संज्ञा स्संठाण-संस्थानवाले हुंडा-हुंडक संस्थानवाले गाथार्थ: सभी को 4 या 10 संज्ञाएँ होती हैं। सभी देव समचतुरस्र संस्थानवाले, गर्भज मनुष्य और तिर्यंच को छ संस्थान होते हैं। विकलेन्द्रिय और नरक हुंडक संस्थानवाले हैं। . . . विशेषार्थ सभी दंडकों में 4 अथवा 10 संज्ञा है और कितने मनुष्यो को 16 संज्ञा होती है। वे संज्ञा संज्ञि पंचेन्द्रियों में तो स्पष्ट उपलब्ध होती है, और एकेन्द्रिय में दंडक प्रकरण सार्थ 59 संज्ञा, संस्थान द्वार
SR No.004273
Book TitleDandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Original Sutra AuthorGajsarmuni, Haribhadrasuri
AuthorAmityashsuri, Surendra C Shah
PublisherAdinath Jain Shwetambar Sangh
Publication Year2006
Total Pages206
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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