________________ गाथार्थ देवों का वैक्रिय शरीर एक लाख योजन का और मनुष्यों का वैक्रिय शरीर कुछ अधिक एक लाख योजन का है, तिर्यंचोका नवसो योजन का और नारकों का वैक्रिय शरीर दुगुणा है। विशेषार्थ अब उत्तरवैक्रिय शरीर की उत्कृष्ट अवगाहना देव को संपूर्ण एक लाख योजन और मनुष्यों की कुछ अधिक एक लाख प्रमाण सिद्धांत में कही है। दंडक वृत्ति में देवों को और मनुष्यों को दोनों को अधिक एक लाख योजन की अवगाहना कही है। कुछ अधिक-४ अंगुल प्रमाण ही ज्यादा जानना, क्योंकि देवों का उत्तरवैक्रिय और मनुष्य का वैक्रिय शरीर शीर्ष भाग तो समान रहता है, लेकिन मनुष्य भूमि को स्पर्श करके खडा रहता है, और देव जमीन से 4 अंगुल अध्धर रहते है, इसी वजह से नीचे के भाग में मनुष्य का शरीर 4 अंगुल अधिक है, और देवों का शरीर मनुष्य से 4 अंगुल कम होने से पूर्ण एक लाख योजन का है। ऐसा महान वैक्रिय शरीर श्री विष्णुकुमार मुनि ने वर्षाकाल में एक स्थान पर स्थिर रहे हुए मुनि महात्माओं को धर्म द्वेष से देश में से चले जाने के लिए कहनेवाला और किसी भी तरह से नहीं समझने वाला महापापी नमुचिमंत्रि को सजा-शिक्षा करने के लिए श्री मुनिसुव्रत स्वामि के शासन में किया था। ग्रैवेयक और अनुत्तर देव उत्तरवैक्रिय शरीर बनाते नहीं हैं। शेष सभी देव उत्तरवैक्रिय शरीर बनाते हैं। तिर्यंचों का उत्तरवैक्रिय शरीर नव सो योजन और नरक को अपने शरीर प्रमाण से दुगुणा होता है। | दंडक प्रकरण मार्थ (54) उत्तर वैकिय की उत्कृष्ट अवगाहना |