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________________ // आत्म - कमल - लब्धि - विक्रम - स्थूलभद्रसूरीश्वरजी सद्गुरूभ्यो नमः॥ नमो अरिहंताणं श्री जिनेश्वर भगवंत ने शासन स्थापना करके भव्यात्माओं के उद्धार के लिए जगत को द्वादशांगी के भेट दी है / द्वादशांगी की आराधना और अभ्यास के लिए प्रायः करके साधु - साध्वीजी महाराज को अनुज्ञा पूर्वाचार्यों ने दी है / श्रावक - श्राविकाओं को वह द्वादशांगी सुनने का अधिकार प्राप्त है / वह द्वादशांगी में एक ही सूत्र का द्रव्यानुयोग चरणकरणानुयोग, गणितानुयोग, धर्मकथानुयोगे से चार चार अर्थ होते थे। लेकिन दुःषम काल के प्रभाव से बुद्धि का क्षयोपशम कम होने की वजह से द्रव्यानुयोगादि का चार चार अर्थ नही धारण कर पाने से आर्य रक्षितसूरीश्वरजी महाराज ने चार अनुयोग मय द्वादशांगी को एक अनुयोगमय की, जैसे आचारांग सूत्रादि चरणकरणानुयोगमय, सूर्यप्रज्ञप्ति आदि गणितानुयोगमय, विपाकसूत्रादि धर्मकथानुयोगमय, भगवती सूत्रादि द्रव्यानुयोगमय किया / इस तरह वीर निर्वाण से 1000 साल तक चलता रहा / बाद मे देवर्धिगणि क्षमा श्रमणजी म.सा ने जीवो की बुद्धि की मंदता देखकर सभी सूत्रों ग्रंथारूढ किये / वह सूत्रों बुद्धिमानों के योग्य होने से पूर्वाचार्योने बालजीवों के उपकार करने के लिए बहुत प्रकरणादि ग्रंथ शास्त्र ज्ञान से वंचित न रहे इस हेतु से संस्कृत/ प्राकृत / गुजराती/हिन्दी आदि लोक भाषाओ में रचे / इस तरह विरहपदयुक्त श्री हरिभद्रसूरीश्वरजी म.सा ने जंबुद्वीप संग्रहणी और गजसार मुनि ने दंडक प्रकरण की रचना की। जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति प्रकरण गणितानुयोगमय है / दंडक द्रव्यानुयोगमय ग्रंथ है / दंडक प्रकरण का दंडक विचार, षट्त्रिंशिका, विज्ञप्तिषट्त्रिंशका, विचार स्तव आदि नाम है / जंबूद्वीप संग्रहणीका लघु संग्रहणी ऐसा नाम भी है / ये ग्रंथ गुजराती में श्री जैन श्रेयस्कर मंडल और श्री
SR No.004273
Book TitleDandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Original Sutra AuthorGajsarmuni, Haribhadrasuri
AuthorAmityashsuri, Surendra C Shah
PublisherAdinath Jain Shwetambar Sangh
Publication Year2006
Total Pages206
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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