________________ को शब्द, आवाज सुनने के लिये श्रोत्रेन्द्रिय भी होती है। सामान्यतः कान को श्रोत्रेन्द्रिय कहते है। सामान्यतः हमकों लगता है कि हमारे आंख, कान, नाक, जीभ और त्वचा हमको दिखाती है, सुनवाती है, सुंघवाती है, चखाती है और स्पर्श का अनुभव कराती है, लेकिन ऐसा नहीं है। उदाहरण :- दो अंधे आदमी के जीभ के अग्रभाग पर सफेद चमकता अलग-अलग प्रकार के दो कंकर रखे जाये तो एक बोलेगा ‘यह मीठा है' दूसरा बोलेगा ‘यह खट्टा है' क्योंकि पहलेवाला कंकर शक्कर था और दसरावाला फटकड़ी का था। इस मिठास और खट्टाश की पहचान करनेवाला कौन ? तो आप कहेंगे जीभ है, लेकिन ऐसा नहीं है क्योंकि अगर इस कंकर को जीभ के बदले नाक में रखी होती तो ‘यह मीठा है' ऐसा नहीं कह सकता, क्योंकि नाक में स्वाद पहचानने की शक्ति नहीं है। जीभ जो कि गंध की परीक्षा नहीं कर सकती, लेकिन स्वाद पहचानने मे तो वह उपयोगी हे न ? इसके बिना स्वाद मालुम ही नहीं पड़ता। लेकिन सिर्फ अकेली जीभ यह कार्य नहीं कर सकती। जीभ के भीतर अस्त्रा की धार जैसे, सूक्ष्म आकारवाले ज्ञानतंतु है, उसके साथ जीभ के ऊपर रखी हुई शक्कर का संबंध होता है तब मीठा रस जानने की आत्मा में रही हुई ज्ञानशक्ति प्रकट हो जाती है और उसको तुरंत जानकर दूसरी ज्ञानशक्ति से मन में निश्चय होता है कि यह रस मीठा है'। द्रव्य और भाव इन्द्रियां - अब यहां पर दो प्रमुख मुख्य कार्य हुए। शरीर और आत्मा का। जीभ और उसके अंदर का सूक्ष्म आकार का अवयव है, ये दोनों शरीर के तत्त्व से बने हुए है और उसकी वजह से आत्मा का जो ज्ञानगुण जागृत होता है वह ज्ञानगुण आत्मा का ज्ञान तत्त्व है। मीठा रस जानने की ज्ञान शक्ति आत्मा में है लेकिन निमित्त मिलने पर जागृत होती है और बाद में वस्तु के सही स्वरूप को जानकर | दंडक प्रकरण सार्थ (23) द्रव्य और भाव इन्द्रियां