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________________ . ३.संघयण संघयण याने हड्डीयों की रचना। कहा है कि “संघयणमट्ठि निचओं' वह छ प्रकार के हैं। 1. वज्रऋषभ नाराच 4) अर्ध नाराच 2. ऋषभ नाराच 5) कीलिका 3. नाराच 6) सेवार्त या छेवठ्ठ 1. वज्रऋषभ नाराच :- वज्र याने किल, ऋषभ याने पाटा, नाराच याने दोनों तरफ से मर्कटबंध / मर्कटबंध का मतलब है कि बंदरी को उसका बच्चा जिस तरह से चिपक कर रहता है, उसको मर्कटबंध कहते है। इस तरह से जो रचना होती है वह मर्कटबंध से बंधे हुए हड्डी के ऊपर ऋषभ याने पाटा लगाया जाता है और उसके ऊपर, आरपार जानेवाला किल लगाया जाता है तब जैसी मजबूती होती है उसे वज्र ऋषभ नाराच कहते हैं। 2. ऋषभ नाराच :- (वज्र-किल बिना का) मर्कटबंध के ऊपर पाटा होने से जो दृढ़तावाली हड्डी की रचना होती है वह ऋषभनाराच। 3. नाराच :- सिर्फ मर्कटबंध की दृढ़ता जैसी दृढ़तावाली हड्डी की जो रचना होती है वह नाराच। 4. अर्धनाराच :- आधा मर्कटबंध की दृढ़ता जैसी दृढ़तावाली हड्डी की रचना को अर्धनाराच कहते है। 5. कीलिका :- मर्कटबंध के बिना, दो सांधे के आरपार किल लगा होता हैं, तब जैसी दृढ़ता होती है ऐसी दृढ़तावाली हड्डी की रचना को कीलिका कहते है। 6. छेवढु अथवा सेवार्त :- संधिस्थान पर आमने-सामने आये हुए दो अंतिम भाग को खंडनी के अंदर रखे हुए मुशल की तरह एक भाग की खोभण (थोड़ा खाली भाग) में दूसरा भाग का बूठा भाग थोडासा उतरकर याने स्पर्श | दंडक प्रकरण सार्थ (15) संघयण द्वार
SR No.004273
Book TitleDandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Original Sutra AuthorGajsarmuni, Haribhadrasuri
AuthorAmityashsuri, Surendra C Shah
PublisherAdinath Jain Shwetambar Sangh
Publication Year2006
Total Pages206
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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