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________________ 0 0 0 पूर्व " रुप्यक्ला हिरएयवंत क्षेत्र में पश्चिम की ओर बहती है| 28000 नदी परिवार के साथ रूप्यकुला- " | पश्चिम " 28000 हरिसलिला-हरिवर्ष " 56000 हरिकान्ता- " पश्चिम " 56000 नरकांता- रम्यक् " 56000 नारीकांता- " पश्चिम " 56000 ये आठ नदीयां अपने-अपने परिवार के साथ लवण-समुद्र मे मिलती . है। 14000+14000+14000+14000+112000+224000+12 मुख्य नदीयां=३९२०१२ नदीयां यहां तक समझना। महाविदेह क्षेत्र की नदियां गाथा: कुरुमज्झेचउरासी-सहस्साइंतहय विजयसोलससु। बत्तीसाण नईणं, चउदससहस्साइंपत्तेअं(यं) |23|| संस्कृत अनुवाद कुरुमध्ये चतुरशीतिसहस्राणि तथाच विजयषोडशसु। द्वात्रिंशतो नदीनां, चतुर्दशसहसाणि प्रत्येकम्॥२३॥ अन्वय सहित पदच्छेद कुरु मज्झेचउरासीसहस्साइंतहय विजयसोलससु बत्तीसाण नईणंपत्तेयंचउदससहस्साइं|२३|| * फूटनोट :जंबू. संग्रहणी की वृत्ति में यह गाथा केवल पूर्व महाविदेह क्षेत्र के बारे में ही (सीता नदी के संबंध में ही) वर्णन किया हुआ है, लेकिन यह गाथा दोनो नदी के संबंध में और दोनो महाविदेह के संबंध में घट सकती हैं। | लघु संग्रहणी सार्थ (170) महाविदेह क्षेत्र की नदियां
SR No.004273
Book TitleDandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Original Sutra AuthorGajsarmuni, Haribhadrasuri
AuthorAmityashsuri, Surendra C Shah
PublisherAdinath Jain Shwetambar Sangh
Publication Year2006
Total Pages206
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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