________________ दक्षिण दिशा में दो दो मेखला (सपाट- प्रदेश) आते है। उसमें उत्तर तरफ की समभूतल प्रदेश ऊपर रथनूपुर आदि 60 शरह और दक्षिण तरफ की समभूतल प्रदेश पर गगनवल्लभ आदि 50 शहर है और उसमें प्रज्ञप्ति आदि विद्यादेवीओं की मदद से मनचिंतित कार्य करने की शक्तिवाले विद्याधर जाति के मनुष्य रहते हैं। उत्तर की ओर 60 और दक्षिण की ओर 50 नगर होने का कारण उत्तर की ओर पर्वत की लंबाई ज्यादा है और दक्षिण की ओर पर्वत की लंबाई कम है। ऐरावत क्षेत्र में मेरु की ओर पर्वत की लंबाई ज्यादा होने से दक्षिण दिशा में 60 नगर और उत्तर दिशा में 50 नगर है। इन राजधानी के नगरों के साथ दूसरे भी अनेक गांव भी होते हैं। महाविदेह की हरेक विजय के वैताढ्य पर्वत पर भी दो-दो मेखलाएँ है उनके ऊपर 55-55 नगर होते है। इस प्रकार 34 विजयों के 68 विद्याधर के नगरों की श्रेणियां हैं और 3740 कुल नगर है। 68 x 55 = 3740 / आभियोगिक श्रेणियां:- ऊपर कही हुई मेखलाओं से ऊपर 10 योजन ऊपर जाने से वहां 10 योजन विस्तारवाली वैताढय की दोनो ओर दूसरी दो समभूतल प्रदेशवाली मेखलाएँ आती है। दोनों पर अभियोगिक पदवी के तिर्यग्नुंभक व्यंतर देवों के भवन है। ____मेरु से दक्षिण की तरफ 16 महाविदेह की विजय और भरत की विजय के वैताढय उपर सौधर्म इन्द्र के लोकपाल के अभियोगिक तिर्यग्भक व्यंतर देव रहते हैं। और उत्तर तरफ की 16 विजय के और 1 ऐरावत के वैताढय पर ईशानेन्द्र के लोकपाल के अभियोगिक तिर्यग्भक व्यंतर देव रहतें हैं। . सोम-यम-वरुण-और कुबेर इन चार जाति के लोकपाल देवों के साथ संबंध रखनेवाले आभियोगिक देव व्यंतर देव है। (आभियोगिक याने नौकरचाकर के रूप में काम करनेवाले देव)। | लघु संग्रहणी सार्थ (163 (163) श्रेणियां